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गुरुवार, 1 दिसंबर 2016

503....भारत के 500 और 1000 रुपये के नोटों के विमुद्रीकरण,

जय मां हाटेशवरी...


सारे 
समीकरणों
के कर्णधार
तय करते हैं
किस कुत्ते
को आदमी
बनाना है
और
कौन सा
आदमी खुद
ही कुत्ता
हो जाता है

भारत के 500 और 1000 रुपये के नोटों के विमुद्रीकरण,

जिसे मीडिया में छोटे रूप में नोटेबंदी कहा गया, की घोषणा 8 नवम्बर 2016 को रात आठ बजे  भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा अचानक राष्ट्र को किये गए संबोधन के द्वारा की गयी। इस घोषणा में 8 नवम्बर की आधी रात से देश में 500 और 1000 रुपये के नोटों को खत्म करने का ऐलान किया गया। इसका उद्देश्य केवल  काले धन  पर नियंत्रण ही नहीं बल्कि  जाली नोटों  से छुटकारा पाना भी है।
इस विषय पर हर तरफ चर्चा है...
इस लिये आज के  लिंक भी...इसी विषय पर...

रूपये 500 व 1,000 की नोट बंदी और भारतीय अर्थव्यवस्था
पक्ष-

नकली मुद्रा पे काबू -
500 व् 1,000 के जेसे बड़े नोट बंद करने का सबसे ज्यादा असर, भारतीय बाज़ार में मोजूद लगभग 16 लाख करोड़ की नकली मुद्रा पे पड़ेगा. नकली मुद्रा 500 व् 1,000 के नोट के रूप में नेपाल व् बांग्लादेश के माध्यम से भारतीय बाज़ार में उतारी जाती है. जोकि जीडीपी की लगभग 20% है इन बड़े नोटों के बंद हो जाने से यह नकली मुद्रा और कुछ नहीं बस कागज के टुकड़े मात्र बन  के रह गयी है.

विपक्ष-
- बैंक व् ATM पे लम्बी लाइन लगेगी, लोग अपने पुराने नोट बदलने/जमा करने के साथ ही नये नोट भी निकालेंगे और भारत के अपर्याप्त बैंकिंग ढांचा को देखते हुए बैंको पे मारा-मारी होना लाजमी है. रोजाना मजदूरी करके पेट भरने वालो के लिए दिन भर बैंक की लाइन में लगना एक मुश्किल कार्य होगा.
- ग्रामीण भारत में बैंकिंग व्यवस्था के साथ साथ मोद्रिक ज्ञान की कमी को देखते हुई, जब उन्हें पता चलेगा कि उनका 500, 1,000 का नोट किसी काम का नहीं रहा, तो ग्रामीण जनों में भय का माहोल बनेगा.

500 और 1000 रुपए के नोट बंद होने से हो रहा नुकसान ...
वही दिल्ली में अरविन्द केजरीवाल कहते है नोट बंद होने की जानकारी  बीजेपी को थी और उन्होंने अपना काले धन  ठिकाने लगा दिया और आगे वो कहते है आज बैंक में आम आदमी  लाइन में लगा  है कोई भी बड़ा पैसे वाला कही नहीं नजर आता है जिनके पास काला धन था उन्होंने सोना खरीद लिया  और कुछ ने इसे डॉलर से बदल लिया इस तरह 500 और 1000 के नोट बंद होने  देश में  केवल आम आदमी रिक्शेवाला, मोची, नाई, किसान, किराने वाला या मजदूर  परेशांन है उम्मीद करते है जल्दी ही देश में सब कुछ जल्दी ही पहले की तरह हो जायेगा !!

समय की मांग
आठ नवम्बर को एक जलजला आया, यह प्राकृतिक नहीं मानव निर्मित था, पर इससे सारा देश हिल गया। सरकार की तरफ से इसे भ्रष्टाचार, काले धन और बाजार में छाई नकली मुद्रा से निजात पाने के लिए उठाया गया कदम बताया गया। आम भारतीय जो देश के हित के लिए किसी भी प्रकार की परेशानी-कठिनाई सहने को और त्याग करने को तैयार हो जाता है उसने अपने स्वभाव के अनुसार दसियों दिन तकलीफें झेलीं पर इस कठोर निर्णय का स्वागत ही किया। कारण साफ़ था, हमारे देश की अधिकतम आबादी वह है जो अपना खून-पसीना एक करने बावजूद अपनी आवश्यकता के सौ रुपये के बदले नब्बे रुपये ही कमा पाती है। उसके पास अपना उजला धन ही नहीं टिकता तो काले धन की बात ही कहां ! यह तबका वर्षों से मंत्री, संत्री, नेता, अभिनेता, इंजिनियर, ठेकेदार, फलाने-ढिमकाने के पास या फिर उनके द्वारा ठिकाने लगाए गए काले धन के बारे में सुनता आ रहा था। आज उसके मन में कहीं दबे ऐसे धन्ना-सेठों के प्रति आक्रोश को तसल्ली मिली। काले धन के देश के काम आने की बात सुन उसने परेशानियों को सहते हुए भी इस निर्णय का स्वागत किया।

उथल-पुथल मची हुई है मन में हादसे एक  पूरे परिवार को ही नहीं एक पूरे कुनबे को ख़तम कर देते हैं। .... एक पूरी पीढ़ी  पीछे चले जाते हैं लोग। ट्रेन हादसे में एक पत्रकार के घायल बच्चे के परिजन से किया प्रश्न - जब हादसा हुआ तो आपको कैसा फील हुआ ? इस बच्चे के माता-पिता ? जबकि वे नहीं रहे ये जानकारी के बिना पत्रकार इंटरव्यू लेने नहीं गया होगा।  हमें भीतर तक संवेदनहीन बना रहे हैं।

काला धन
पर सब लोग कह रहे काला धन होता है
धन का कोई रंग नहीं होता
धन तो सबके काम आता है
वो गरीब हो या अमीर
कुछ लोग ऐसे है जो धन को दबा कर रखे है
जो हमारे देश को खोखला कर रहा है
जो हुआ अच्छा हुआ
सरे गरीब और अमीर बराबर हो गए
सबसे ज्यादा तो चोट महिलाओं को लगी


आज बस इतना ही....
फिर मिलते हैं....


धन्यवाद।

   











5 टिप्‍पणियां:

  1. शुभ प्रभात
    बेहतरीन प्रस्तुति
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  2. सुन्दर हलचल कुलदीप जी । आभार 'उलूक' के सूत्र 'समीकरण' की चर्चा करने के लिये ।

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत ही सुन्दर आलेख है आपका धन्यवाद कुलदीप जी !! मेरे blog को यहाँ link करने

    जवाब देंहटाएं

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