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मंगलवार, 22 नवंबर 2016

494...नोटबंदी साध्य नहीं, साधन है


जय मां हाटेशवरी...

देश में आज के माहौल पर...
किसी ने क्या खूब लिखा है...
कतारें थककर भी खामोश हैं,नजारे बोल रहे हैं।
नदी बहकर भी चुप है मगर किनारे बोल रहे हैं।
ये कैसा जलजला आया  है दुनियाँ में इन दिनों,
झोंपडी मेरी खडी है और महल उनके  डोल रहे हैं।।
परिंदों को तो रोज कहीं से गिरे हुए दाने जुटाने थे।
पर वे क्यों परेशान हैं जिनके घरों में भरे हुए तहखाने थे😊

अब पेश है...कुछ चुनी हुई रचनाएं....

बसंत आ गया ? .......
आया तो आया पर
कौए और कोयल का भेद
बिन कहे ही ऐसे कैसे
सबको बता गया ?
कोयल तो
नाच कर , स्वागत गान कर
चहुँ ओर कूक रही है
और कौए ?
आक्रोश में हैं , अप्रसन्न हैं

महाप्रतिभा मंडित महापुरुष दयानंद
उन्नीसवीं शताब्दी के परार्द्ध भारत के इतिहास का अपर स्वर्ण प्रभात है। कई पावन चरित्र महापुरुष अलग अलग उत्तरदायित्व लेकर इस समय इस पुण्य भूमि में अवतीर्ण होते हैं। महर्षि दयानंद सरस्वती भी उन्हीं में एक महाप्रतिभा मंडित महापुरुष हैं। शासन बदला ,अंग्रेज आये, संसार की सभ्यता एक नए प्रभाव से बही, बड़े बड़े पंडित, विश्व साहित्य, विश्व ज्ञान विश्व मैत्री की आवाज उठाने लगे। पर भारत उसी प्रकार पौराणिक रूप के मायाजाल में भूला रहा। इस समय ज्ञान स्पर्धा के लिए समय को फिर आवश्यकता हुई। और महर्षि दयानंद का यही अपराजित प्रकाश है। वह अपार वैदिक ज्ञान राशि के आधार स्तम्भ स्वरुप अकेले बड़े-2   पंडितों का सामना करते है। एक ही आधार से इतनी बड़ी शक्ति का स्फुरण होता है कि आज भारत के युगांतर साहित्य में इसी साहित्य में इसी की सत्ता प्रथम है, यही जनसंख्या में बढ़ी हुई हैं।

ईमान का उत्सव
तीसरे दिन से सारा देश लाइन में खड़ा है
कि शहंशाह के रंग के चंद
कागज के टुकड़े मिल जाएँ
कुछ चहेतों को मिले
बाकी अभी भी लाइन में खड़े हैं
देश में अमीर भले ही हों
पर देश तो अमीर नहीं है, इसलिए
लाइन में केवल गरीब खड़े हैं

बेवफा
उफ्फ्फ
तुमने अमर प्रेम को कलंकित कर दिया
नहीं नहीं---
अब कोई सफाई नही --
कोई सुनवाई नही होगी अब --
सोनवीर ने कह दिया तुम बेवफा हो तो हो ।

फैज़ अहमद फैज़ की पुण्य तिथि 20 नवम्बर पर उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि / विजय शंकर सिंह
सुबह ए आज़ादी.
ये दाग़ दाग़ उजाला, ये शबगज़ीदा सहर
वो इन्तज़ार था जिस का, ये वो सहर तो नहीं।
ये वो सहर तो नहीं जिस की आरज़ू लेकर
चले थे यार कि मिल जायेगी कहीं न कहीं ।
फ़लक के दश्त में तरों की आख़री मंज़िल
कहीं तो होगा शब-ए-सुस्त मौज् का साहिल
कहीं तो जा के रुकेगा सफ़िना-ए-ग़म-ए-दिल
जवाँ लहू की पुर-असरार शाहराहों से ।
चले जो यार तो दामन पे कितने हाथ पड़े
दयार-ए-हुस्न की बे-सब्र ख़्वाब-गाहों से
पुकरती रहीं बाहें, बदन बुलाते रहे

नोटबंदी साध्य नहीं, साधन है
देशभर में जीएसटी लागू होने वाला है, जिसकी वजह से कर-चोरी पर भी रोक लगेगी। व्यापारी वर्ग भाजपा का राजनीतिक आधार है। नोटबंदी से सबसे ज्यादा नाराज यही वर्ग है। क्या नरेन्द्र मोदी अब ज्यादा बड़े वर्ग की राजनीति करना चाहते हैं? उन्होंने 2014 का चुनाव विकास और युवा आकांक्षाओं और मध्यवर्ग के सपनों के सहारे जीता था। शायद वे आम आदमी पार्टी के हाथों से उसका हथियार छीनने जा रहे हैं। ऐसा है तो राजनीतिक चंदे को पारदर्शी बनाने की जरूरत होगी। इस खेल में उनकी पार्टी को भी धक्का लगेगा। उन्होंने व्यापारियों को नाराज करके अपने राजनीतिक आधार को धक्का पहुँचाया है। पर उन्हें नया जनाधार मिल भी सकता है। क्या वे इसके लिए तैयार हैं?

आज बस इतना ही...
फिर मिलेंगे...
धन्यवाद।















4 टिप्‍पणियां:

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