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गुरुवार, 20 अक्तूबर 2016

461....करवा चौथ बनाम सुखी गृहस्थी


जय मां हाटेशवरी...

कुछ दिन पहले दशहरा बीता है...
और  कल करवा चौथ  था...
मैंने अनुभव किया है कि...
कुछ समय से...
हमारी प्राचीन परम्पराओं व पर्व त्योहारों का...
सोशल साइटों पर मजाक बनाया जा रहा है...
जो किसी भी तरह उचित नहीं है...
प्रत्येक पर्व,  त्योहार का अपना महत्व है...
कुछ लोग, मैं जिन्हे अक्सर मूर्ख कहता हूं...
किसी विशेष धर्म या जाति  को बदनाम करने के उदेश्य से...
इस प्रकार का भ्रामक प्रचार करते हैं...
ये घोर  मजाक हैं...
ये किसी की भावनाओं को आहत कर रहे  हैं...
मैने विजय शंकर महता द्वारा रचित एक लेख पढ़ा था...
जिसे कुछ अंश...
जितने उत्सव और त्योहार हमारे देश में मनाए जाते हैं संभवत: किसी मुल्क में नहीं मनाए जाते। हमारे पूर्वज कुछ काम ऐसे कर गए हैं, जो हमारे डीएनए में उत्सव और त्योहार बनकर बह रहे हैं। हमें समझना चाहिए कि ये केवल हुड़दंग नहीं है। त्योहार हमें आपस में जोड़ते हैं और विश्राम के लिए पड़ाव देते हैं। आज व्यावसायिक जगत में इतनी चुनौतियां व प्रतिस्पर्द्धा हो गई है कि यदि शीर्ष पर पहुंचकर थक गए तो आप सफलता की दुनिया में भूतपूर्व ही नहीं, स्वर्गीय हो जाएंगे। कुछ लोगों के मन में तो यह बात बैठ गई है कि आगे बढ़ना है तो दूसरे को पीछे नहीं छोड़ना, उसे समाप्त ही कर देना है। ऐसे प्रतिस्पर्द्धी माहौल में त्योहार विराम देते हैं, शांति
देते हैं। रचनात्मक सोचने का मौका और दूसरों के साथ खिलवाड़ न करने का संदेश देते हैं। खासतौर पर यह संदेश देते हैं कि जो भी करें, पूरी तरह डूबकर करें।

कोई करवा चौथ   को महिलाओं का ठौंग...
कोई महिलाओं का शोषण कह रहे हैं...
मैं तो करवा चौथ   को...
आज के समय की आवश्यक्ता मानता हूं...
क्योंकि परिवार टूट रहे हैं...
महिलाओं का घरों में शोषण हो रहा है....
तलाक के मामले अदालतों में बढ़ रहे हैं...
यही एक पर्व है...
जो घरेलु हिंसा या तलाक जैसे सामाजिक ग्रहण को...
चांद के दिदार  से मिटाने का प्रयास  कर रहा है...
केवल आवश्यक्ता है...
इस पर्व के महत्व को समझने की...
हमारे प्राचीन प्रत्येक पर्व व  त्योहार में अपनी विधि व परंपरा के साथ समाज, देश व राष्ट्र के लिए कोई न कोई विशेष संदेश निहित  है...
मेरा एक और सवाल है कि सारी रोक टोक हिंदू त्योहारो के लिये ही क्यों?होली पर हुड़दंग के नाम पर दोपहर बाद रंग खेलने पर पाबंदी लगा रहे हैं?तो तमाम विरोध और
तमाशे के बावजूद वैलेंटाईन डे मनाने के लिये पुलिस सुरक्षा मुहैया करा रहे हैं?दिवाली पर रात दस बज़े के पटाखे फ़ोड़ो तो ज़ेल जाने की धमकी मिलती है तो न्यू ईयर
पर तो पटाखे फ़ूटना ही आधी रात के बाद शुरू होते हैं?क्या तब प्रदुषण नही होता?जल संकट से बचने के लिये एक दिन का अभियान नही उसके असमान वितरण और उसके असामान्य
दोहन पर भी रोक लगाने पर विचार करना होगा,न कि त्योहारो से छेडछाड करने की ज़रुरत है।


मैंने  तो माननीय मोदी जी की तरह...
अपने मन की बात कह दी...
अब बारी है आप की...
पढ़ते हैं...आप के मन की बात भी...

 करवा चौथ बनाम सुखी गृहस्थी
बच्चों की शिक्षा एवं संस्कार सर्वोपरि हैं। बच्चों की शिक्षा संस्कारित तरीके से हो इसके लिए त्याग और समर्पण जरूरी है वर्ना दहन और सम्मान दोनों का कोई मतलब नहीं बचता है।
और अंत में एक दूसरे का विश्वास ,प्रोत्साहन ओर छोटे छोटे त्याग और समर्पण मन में साहस एवं उत्साह भर देतें हैं। क्यों न इस करवा चौथ को अपनी गृहस्थी सँभालने के संकल्प लें।

हर लम्हा खुश होना पड़ेगा............डॉ. फ़रियाद "आज़र"
वो शायद ख़्वाब में दोबारा आये
मुझे इक बार फिर सोना पड़ेगा
निखर जायेगी फिर सूरत तुम्हारी
मगर अश्कों से मुँह धोना पड़ेगा

क्यों ....... सुनो .......
जानती हूँ  .... ये सफर जीवन का
इतना सहज भी नही  ..... 
इसीलिए तो साथ हमारा प्यार है
कहीं किसी राह में लगी ठोकर
लड़खड़ाते कदम भी संभल जाएंगे
थामे एक दूजे के हाथ
शून्य से क्षितिज पर आ ही जाएंगे  ..... निवेदिता

अंग्रेजी के सामने हिन्दी: रावण रथी विरथ रघुवीरा
आजादी के बाद, देश में दो बड़ी समस्याओं, कश्मीर और राजभाषा को दृढ़ राजनीतिक इच्छाशक्ति से हल किया जाना था। हमने सकुचाते हुए और डर से हल करना चाहा। पाकिस्तान ने कश्मीर पर कबाइली हमला किया। हमले को नाकाम करती हमारी सेना पूरा कश्मीर खाली करवा पाती इसके पहले ही हमने संघर्ष विराम कर लिया। संविधान ने हिन्दी को राजभाषा घोषित तो 14 सितम्बर 1949 को कर दिया था, लेकिन प्रावधान करवाया गया कि यह घोषणा 15 साल बाद लागू होगी। तब तक हिन्दी सक्षम हो जाएगी। 1967 में फिर प्रावधान
करवाया गया कि अंग्रेजी अनिश्चित काल तक बनी रहेगी। हिन्दी की सक्षमता कौन,  कब और कैसे नापेगा, इस बार मेें कुछ भी नहीं बताया गया। लीपापोती ने कश्मीर व राजभाषा दोनों समस्याओं को नासूर बना दिया। कश्मीर की समस्या सतह पर है। बाह्य है। दिखती है। राजभाषा की समस्या अन्दर की है। दिखती नहीं है। देश की 95 प्रतिशत से अधिक आबादी की मौलिक प्रतिभा अंग्रेजी के कारण ही दीन व गूँगी बनी रहने को अभिशप्त है। नासूर को चीरा लगाना पड़ता है, पर यह काम काँपते हाथों से न हुआ है और न होगा। 14 सितम्बर 1949 को जैसे ही संविधान में हिन्दी को राजभाषा स्वीकार किया गया देश की बहुत बड़ी आबादी जश्न में डूब गई। संविधान सभा के अध्यक्ष डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने प्रसन्न भाव से टिप्पणी की - ’हमने जो किया है, उससे ज्यादा अक्लमन्दी का फैसला हो ही नहीं सकता था।’ जश्न मनाते लोग यह समझ बैठे कि हिन्दी को राष्ट्रभाषा
घोषित किया गया है। राष्ट्रभाषा (नेशनल लैंग्वेज) और राजभाषा (ऑफिशियल लैंग्वेज) के अन्तर पर उनका ध्यान ही नहीं गया। सम्विधान सभा ने जब यह प्रावधान किया कि अभी 15 साल तक अंग्रेजी ही राजभाषा यानी सरकारी कामकाज की भाषा बनी रहेगी ताकि हिन्दी को समर्थ होने का वक्त मिल जाए
तब इसके निहितार्थ और फलितार्थ का अन्दाजा भी सदस्यों को नहीं हुआ। इसे उन्होंने  स्वीकार कर लिया। भाषा उपयोग से समर्थ बनती हैै। पैरों को भी चलाया न जाए तो वे कमजोर हो जाते हैं। वाहन भी चलाने से ही तो वाहन चलाना आता है। लम्बे समय तक उसे चलाएँगे नहीं तो हमारा, चलाने का सामर्थ्य भी कम होता जाएगा और वाहन को भी जंग लग जाएगी। सत्ता के सिंहासन पर बैठा दी गई अंग्रेजी जहाँ ताकतवर होती गई, वहीं हिन्दी को कमजोर होते जाना पड़ा। फिलवक्त, अंग्रेजी के सामने हिन्दी 'रावण रथी विरथ रघुवीरा' की तरह है।
80 प्रतिशत जानकारी अंग्रेजी और रोमन में उपलब्ध होती थी। अब वह प्रतिशत 40 से भी कम है। देवनागरी में टंकण की कई समस्याओं को कम्पनियाँ तेजी से सुलझाती जा रही हैं। देवनागरी फोण्ट्स पर लाखों लोगों के हाथ तेज गति से दौड़ रहे हैं। माइक्रोसोफ्ट कम्पनी ने माना है कि भारतीय व्यापार का 95 प्रतिशत अब भी भारतीय भाषाओं और भारतीय लिपियों में हो रहा है। स्पष्ट है कि अंग्रेजी और रोमन लिपि के वर्चस्व की सम्भावनाएँ सिकु़ड़ रही हैं। हिन्दी के सन्दर्भ में निराशा धीरे-धीरे छँट रही है। हम जानते हैं कि अन्ततः राम की ही विजय हुई थी।

दिल को छू जाने वाली कहानी
तीन चार महीने गुजर गए थे मैं कैंटीन की तरफ से गुजरी वहां अपनी बोतल में पानी भर रही थी मैंने अजय को देखा आवाज लगाई । वह कुछ नही बोला, मैंने कहा क्या हुआ अजय तुम आज कुछ नही बोले तबियत वगैरह ठीक है, लेकिन उसने कुछ जवाब नही दिया । मुझे क्लास के लिए देरी हो रही थी और एग्जाम की वजह से कॉलेज बन्द भी होने वाला था तो मैंने बैग से 100 रुपये निकाले और उसे देने लगी, लेकिन अजय ने वो रुपये
नही लिए और रोने लगा बोला दीदी अब कोई जरूरत नही क्योँकि पूरे महीने के पैसे बच जाते मेरी मम्मी मर गयी मैं बिलकुल अकेला हो गया। अब कोई जरूरत नही। उसको रोता देख मेरी आँखों में आँसू आ गए। मैंने अजय से कुछ भी नही पूछा और वापस क्लास चली आई। मेरा कॉलेज भी छूट गया, लेकिन आज भी जब अजय के बारे में सोचती हूँ तो बहुत तकलीफ होती है । एक सवाल बार बार आता है मेरे जहन में की पता नही अब वो कैसा होगा?

खाली काग़ज़
और फिर.....
शाम की हथेली पर
बस खाली काग़ज़ रख दिया
....................
क्या वो नज़र
पढ़ पाएगी ये अफ़साना ?
साहब ने की बागबानी

आज बस इतना ही...
कहते हैं न...
थोड़े में...
आनंद अधिक होता है...
धन्यवाद।









6 टिप्‍पणियां:

  1. शुभ प्रभात...
    सुबह आई जरूर थी
    सब कुछ ठीक-ठाक देख कर चली गई
    अब रचनाएँ पढ़ रही हूँ
    सच को जागृत करती प्रस्तुति
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  2. उत्तम लिंक
    सभी रचनाएँ जानकरियों के साथ-साथ एक संदेश भी देती है..

    जवाब देंहटाएं
  3. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत बढ़िया हलचल प्रस्तुति हेतु आभार!

    जवाब देंहटाएं

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