निवेदन।


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शुक्रवार, 30 सितंबर 2016

441...रोज की बकबक से हटकर कुछ शब्द फेसबुक मित्र के आग्रह पर

सादर अभिवादन
लग गया झटका 440 व्होल्ट का 
कुछ नामी-गिरामी लोगों से
आत्मीयता हो गई
वो कुछ इतनी हुई 
कि मैं क्या बताऊँ
उनका कहना था...
ये नक्सली और आतंकवादी
है क्या चीज..इन्हें तो हम

चुटकियों में मसल देंगे..पर
नहीं न चाहते कि ये खत्म हो जाए
???? सोच में पड़ गया मैं..

सामने उसके ये प्रश्न उछाला
??
उसने मेरे कान में कहा...
इनके उन्मूलन के लिए सरकार अकूत

धन देती है,,,,और 
यही हमारा चारा-पानी है
गर ये खतम हो गए तो हम
भूखे मर जाएँगे..

.....
चलिए चलें आज की रचनाओॆ की ओर.....

..पहली बार..
साथ तुम्हारा...........जयश्री वर्मा
साथ तुम्हारा पा के,ये जीवन,यूं खिल सा गया है,
जैसे ठहरी तंद्राओं को,इक वज़ूद सा,मिल गया है।

तुम्हारे इन हाथों में,जब भी कभी,मेरा हाथ होता है,
तो जैसे कि,मेरी खुदी का एहसास,तुम में खोता है।




परजीवी............आशा सक्सेना
इस जिन्दगी का लाभ क्या
जो भार हुई स्वयं के लिए 
हद यदि पार न की होती
भार जिन्दगी न होती



जिन्दों की क्या कहें
वे मुर्दों को नहीं छोड़ते
हर चीज को वे अपनी
तराजू पर तोलते हैं।
वो सबको भुना लेते हैं
वेे शख्स लाजबाब है
लोग भुन जाते हैं



दूर खड़ा शैतान हँस रहा है
मुस्कुरा रहा है
एक बार फिर
वो अपने मक़सद पर कामयाब रहा 
इंसानियत को तार –तार कर गया


मतदाता...गोपेश जायसवाल
‘मतदाता,
खुद अपना भाग्य मिटाता,
इस लोकतंत्र की बलिवेदी पर,
स्वयं दौड़, चढ़ जाता,  
सब काम छोड़,
मतदान केंद्र पर आता,
ऊँगली, स्याही से, स्याह करा,
मतदाता-धर्म, निभाता.




निर्मल गुप्ता, रवि रतलामी,
हिंदी साहित्य में व्यंग्य को लेकर बहुत ज्यादा प्रयोग देखने को नहीं  मिलते है और  जो  अभी तक हुए है उनका भी सही से मूल्याकन नहीं हो पाया है . लेकिन  फिर भी व्यंग्यकारों  ने से एक अनोखा प्रयोग किया - व्यंग्य की जुगलबंदी .


एक गीत..........जयकृष्ण राय तुषार 
उत्सवजीवी लोग यहाँ  
मृदु भाषा बोली है , 
यह धरती का स्वर्ग यहाँ  
हर रंग -रंगोली है , 
देवदार चीड़ों के वन  
कैसी हरियाली है |

आज का ज्वलन्त शीर्षक....
आओ बिटिया 
आज तुम्हारे 
जन्मदिन 
के साथ सारी 
बिटियाओं 
का जन्मदिन 
मनायें 
बिटिया के 
जन्मदिन 
को इतना 
यादगार 
बनायें 

आज्ञा दे दिग्विजय को
फिर मुलाकात होगी...


एक बहुत ही सस्ता हेलीकॉप्टर
आप भी देखिए..ये उड़ता भी है..






गुरुवार, 29 सितंबर 2016

440...यही समय है आँखें खोलो

जय मां हाटेशवरी...

भारत का एक सैनिक...
पाकिस्तान को ललकारते हुए कहता है...
हम वो लोग नहीं है...
जो डर कर भाग जाते हैं...
हम तो वो लोग हैं...
मर कर भी आग में जल जाते हैं...
अब पेश है....
आज की चयनित कड़ियां...
पर सबसे पहले...

सुर, दानव, किन्नर, गन्धर्व, सबसे तट की शोभा बढ़ती
नागों, गन्धर्वों की पत्नियाँ, पावन जल में क्रीड़ा करतीं
देवों के भी क्रीड़ा स्थल हैं, देवपद्मिनी जानी जातीं
मानो करतीं उग्र अट्टाहस, टकराकर प्रस्तर खंडों से
दिव्य नदी का निर्मल हास, फेन प्रकट जो होता जल से
भंवर कहीं पड़ते हैं जल में, वेणी के आकार सा कहीं
निश्चल व गहरा कहीं पर, महा वेग से व्याप्त कहीं

एक फैसले से.........||
जो नमक खाकर नमकहरामी कर रहे हैं यहाँ
उन्हें बतानी है शैह औ मात,,मेरे इक फैसले से ||
दरकते दिलों में नफरत है अनजाना खौफ भरा
करना है उसका भी हिसाब ,,मेरे इसी फैसले से||
लहू में पानी मिलाऊ ,या प्यास का करूं हिसाब
बहीखाता भी करना है बराबर मेरे हर फैसले से ||

यही समय है आँखें खोलो (गीत)
मेरे पीछे तुम भेजोगे गुलदस्तों में फूल सजाकर
उनकी महक व्यर्थ जाएगी, छू न सकूंगा हाथ बढ़ाकर
बेहतर है तुम अभी यहीं पर फूलों वाली खुशबू घोलो
यही समय है आँखें खोलो
'
मुंगिया के सपने
अच्छा,तो स्कूल जाने का मन नहीं करता,मैंने पूछा.मन करता है न स्कूल ड्रेस पहनकर स्कूल जाने का. लेकिन माई जाने नहीं देती, कहती है, काम नहीं करेगी तो घर का
खर्च कैसे चलेगा.बाप अपाहिज है और दिनभर खाट पर पड़ा रहता है,मां कुछ घरों में चौका बर्तन कर घर का खर्च चलाती है.फिर पढ़ाई में खर्चा भी होता है.लेकिन सरकारी
स्कूल में तो फ़ीस नहीं लगता,इस पर वह चुप हो गई.स्कूल के सपने उसकी आँखों में तैरने लगे थे.जिन हाथों में किताबें होनी थीं उन हाथों में असमय ही घर चलाने की
जिम्मेदारी डाल दी गयी थी.

भारतीय रक्त ब्रिटेन के राजवंश तक -
यह रक्त शाही परिवार में शामिल हुआ. अब यह  ब्रिटेन के संभावित राजा की रगों में दौड़ रहा है.
¨प्रिंस विलियम के शरीर में भारतीयों में पाये जाने वाले खास तरह के माइटोकांड्रियल डीएनए है। इस डीएनए की खास बात यह है कि यह किसी भी बच्चे को अपनी मां से
मिलता है। यह पिता से बच्चे तक नहीं जाता। इसी वजह से यह डीएनए ¨प्रिंस विलियम और ¨प्रिंस हैरी तक ही रहेगा.
कुछ बिखरी पंखुड़ियां.....!!! भाग-29
तुम्हारे ही ख्वाब मेरी आँखों में बसते है...तुम्हारी ही बाते मेरे होंठो पर हँसती है..
जब भी मुझे तुम्हारी याद आती है.....
मुझे और भी यकीन हो जाता है...
कि तुमने मुझे याद किया है.....
आज के लिये बस इतना ही...

मेहरबां सरस्वती मे'आर रखती क़ाइमो - दाइम
ग़ज़ल की ही मसीहाई पज़ीराई में कहता हूँ
नहीं राजेन्द्र चिल्लाता, ख़ुशगुलूई मेरा लहजा
बुलंदी की कई बातें ज़ुबां नीची में कहता हूँ

धन्यवाद।













बुधवार, 28 सितंबर 2016

439..पागलों के साथ कौन खड़ा होना चाहता है ?

सादर अभिवादन

लिखना तो कुछ चाहती हूँ
पर..लिखना कहना
नक्कारखाने की तूती

सुनेगा कौन
...
आज की पढ़ी सुनी रचनाएँ...


"दिनभर की भाग-दौड़ में.. 
उग आते हैं.. 
नाराज़गी के छोटे-छोटे फ़ाये.. 
बनते-बिगड़ते काम में.. 
झुलस जाते हैं.. 
मासूमियत के प्यारे साये.. 

आइये, सुबह ५ बजे उठकर, नजदीक के पार्क में, अपने आपको फिजिकल एक्टिव बनाने का प्रयत्न शुरू करें ! हलके हल्के दौड़ते हुए, 
खुलते, बंद होते फेफड़े, शुद्ध ऑक्सीजन को शरीर में पम्प करते, 
शरीर का कायाकल्प करने में पूरी तौर पर सक्षम हैं !
विश्वास रखें ये सच है ...

सुनो !!
कुछ नया गढ़ूं?
नया विस्तार पाने की एक कोशिश
क्यों? है न संभव?

हरे पेड़ और
मिट्टी की खुश्‍बू
से ज्‍यादा
रेलगाड़ी की पटरि‍यों सी
जिंदगी
अच्‍छी होती हैं......।


टूट जाएगा मिरा दिल गर अधूरी रह गयी

आप के तर्ज़े तकल्लुम से तो लगता है यही
रह गयी बाक़ी अभी कुछ सरगिरानी और है


एक साल पहले ..
हिम्मत सच के 
लिये खड़े होने 
के लिये हर कोई 
सच को झूठा 
बनाना चाहता है 
‘उलूक’ के साथ 
कोई भी नहीं है 
ना होगा कभी 
पागलों के साथ 
खड़ा होना भी 
कौन चाहता है । 
......
इज़ाज़त चाहती है यशोदा







मंगलवार, 27 सितंबर 2016

438...विश्व में अमन हो...

जय मां हाटेशवरी...

न भिष्म की सुनी...
न मां गांधारी की...
श्री कृष्ण भी शांती दूत बन कर गये...
फिर भी दुर्योधन न माना...
और युद्ध हो कर ही रहा...
आज पाकिस्तान की भी यही स्थिति है...
कहते हैं न...
जब काल किसी पर छाता है...
पहले विवेक मर जाता है...
युद्ध से तो केवल विनाश ही होता है...
महाभारत के बाद...
न कौरव सुखी थे...
न पांडव...
काश पाकिस्तान को ये  बात   समझ आ पाती...
विश्व में अमन रहे...
इस आशा के साथ...
पेश है आज की चुनी हुई कड़ियां...
माँ तू बोली थी न
 बहादुर बाप का बहादुर बेटा है तू
शहीद हो गए हैं तेरे बाबा
देश के खातिर जान लुटा दी
था भारत का वो वीर सिपाही
नत मस्तक सारा देश हुआ है
वीर पुत्र का सम्मान मिला है
सुन कर मुन्ना गोदी से नीचे उतरा
भर कर आँखों में आँसू
 निकट बाबा के जा बैठा
दो नन्हें हाथों को जोड़े
 मन ही मन कुछ वो बोला
समझ न सका कोई कुछ भी
 बस झर झर आँसू बह रहे थे
 अब न थी कोई शिकायत
न माँ से न बाबा से
अचानक ही बच्चा
 बडा हो गया था
या हालात ने बना दिया था



सावन
बहार फ़क़त तेरी आँखों का इक धोखा है
ये वो सावन है जो मेरी आँखों से बरसा है,
तीनों पीढी एक साथ
अलग अलग रहने की
कल्पना तक कभी
 मन में न आई
बरगद की छाँव में
 बगिया मेरी  हरी भरी
मेरे मन को बहुत भाई|
एक मित्र से अनुरोध
भारत में हर व्यक्ति, समस्या निदान के लिए, विश्व का सबसे बड़ा विद्वान है , आप कोई समस्या बताइये जवाब हाज़िर है खास तौर पर बीमारियों के इलाज़ , बिना शरीर हिलाये तो
टिप्स पर हैं  .... हार्ट एवं मोटापे के इतने इलाज हैं कि उन्हें सुनकर आपको लगेगा कि मैं बेकार ही चिंता करता हूँ शायद ही कोई भारतीय होगा जो मेथी, जामुन व्
लहसुन नहीं खाता होगा और यह इलाज बचपन से मालूम हैं , उसके बाद सबसे अधिक मौतें इन्हीं बीमारियों से होती हैं मगर मजाल है कि किसी घर में यह देसी इलाज बंद हुए
हों !
हनुमत रविकर ईष्ट, उन्हें क्यों नही पुकारा
इक सिक्के के लिए, करूं क्यों भक्ति विखंडित।
क्यूं कूदें हनुमान, प्रत्युत्तर देता पंडित।।

लड़ी जा सकनेवाली एक लड़ाई
हम, पाकिस्तान से सर्वाधिक त्रस्त देश हैं। हम सीधा युद्ध तो शुरु नहीं कर सकते किन्तु पाकिस्तानी सेना की तरह छù युद्ध तो लड़ ही सकते हैं। एक ही अन्तर होगा।
हमारी यह लड़ाई धीमी होगी, देर से नतीजा देनेवाली और भारत में ही लड़ी जाएगी।
एक लड़ाई ऐसी भी लड़ने पर विचार करने में हर्ज ही क्या है?
**~प्यारी बेटियाँ ~**
जीवन में कुछ रिश्ते दिल के बहुत-बहुत क़रीब होते हैं -माँ, पिता, बेटा, बेटी और दोस्त ! विशेषकर 'बिटिया' तो दिल की धडकन की तरह हरपल साथ होती है !फिर उसके
लिए किसी एक दिवस की कोई दरक़ार कहाँ !
ये कविता हर दिन, हर पल - सभी बेटियों को असीमित स्नेह एवं शुभकामनाओं सहित समर्पित ~















धन्यवाद।

सोमवार, 26 सितंबर 2016

437.....रहम कर अक्षरों पर

सादर अभिवादन
...
कुछ लोग कहते हैं
क्या कर लोगे तुम लोग
हम तो करते जा रहे हैं
और करते रहेंगे
हमले पर हमले
हत्या पर हत्या
और तुम लोग
मीटिंग के अलावा
भर्स्तना ही तो करोगे

बस बहुत हो गई लिखा-पढ़ी
...
चलिए चलते हैं आज के लिंक्स की ओर....


अभी-अभी

चक्रव्यूह....संगीता स्वरुप
चक्रव्यूह -
लहर का हो या हो मन का
धीरे - धीरे भेद लिया जाता है
और चक्रव्यूह भेदते ही
धीरे -धीरे हो जाता है शांत
मन भी और समुद्र भी .





हिला-हिला धीमे पत्तों को 
पेड़े इशारा करके बोला 
‘उड़ जा चिड़िया‚ 
उड़ जा चिड़िया उड़ जा मेरे सिर से चिड़िया’ 
'देखें क्या कर लोगे मेरा' 
फुदक–फुदक कर ऐंठी बैठी 
चीं–चीं–चीं कर बोली 


शादी का जोड़ा.........रेवा
उसे हाँथ मे लेकर
सहलाया
ह्रदय से लगाया तो
एक क्षण मे
बाबुल का आँगन
याद आ गया....
माँ की एक एक
सीख
पिता का दुलार






तुमने ही तो बताया था 
ये कल-युग है द्वापर नहीं  
कृष्ण बस लीलाओं में आते हैं अब
युद्ध के तमाम नियम
दुर्योधन के कहने पर तय होते हैं
देवों के श्राप शक्ति हीन हो चुके हैं




मिले ग़म से अपने फ़ुर्सत तो सुनाऊँ वो फ़साना| 
कि टपक पड़े नज़र से मय-ए-इश्रत-ए-शबाना| 




न पाया कुछ
न खोने को है कुछ
काहे का डर

खाली है जेब
खाली दिल दिमाग
खाली मकान



अँधेरा है, अँधेरा है,
बेहद अँधेरा है।
घुप अँधेरे ने
सारी सृष्टि को
अपने जाल में / जंजाल में
धर दबोचा है,

पुराने कागज पर नए अक्षर..

बख्स भी दे 
अच्छा नहीं है 
उछल कूद 
कराना 
इतना ज्यादा 
दुखने लगे 
हैं जोड़ 
ऊपर से लेकर 
नीचे तक 
.....
आज्ञा दें
यशोदा को..
1957 का एक गीत याद आ गया आज

आप भी सुनिए..






रविवार, 25 सितंबर 2016

436.....लोग सब जुट जाऐंगे

  सुप्रभात 
सादर प्रणाम 
रविवारीय चर्चा मे 
आज सीधे चलते है लिंको की 
ओर




ग्राम छोटा सा 
जीवंत लोग वहां 
मस्ती में जीते |

चौपाल पर 
शाम ढले आजाते 
भजन गाते |


     "डोर"
तेरे से बंधी मन की डोर
कई बार मुझे
तेरी ओर खींचती है

जी चाहता है
तेरी गलियों के फेरे लगाऊँ
जाने-पहचाने चेहरे देख मुस्कराऊँ




         ग़ज़ल "लोग जब जुट जायेंगे तो काफिला हो जायेगा"
लोग जब जुट जायेंगे, तो काफिला हो जायेगा
आम देगा तब मज़ा, जब पिलपिला हो जायेगा

पास में आकर कभी, कुछ वार्ता तो कीजिए
बात करने से रफू शिकवा-गिला हो जायेगा



कुछ फोड़
कुछ मतलब 
कुछ भी 
फोड़ने में 
कुछ लगता 
भी नहीं है 
नफे नुकसान 
का कुछ 
फोड़ लेने 
के बाद 
किसी ने 
कुछ सोचना 
भी नहीं है 
फोड़ना कहीं 
जोड़ा और 
घटाया हुआ 
दिखता भी 
नहीं है



शहीदों को जिगर में अपने जगाकर तो देखो
कहानी उनकी, उनको सुनाकर तो देखो

सुना दो उनको अमर उन्हीं की कहानी
कहानी जो आँखों में लाती है पानी
पानी नहीं है ये है आँसू की धारा
स्मृति की झिरती हो जैसे अमृत की धारा
रोती है माता और रोती है बहना

••●●♤♡♢♧●●●●●●●■•

अब दिजिए 
विरम सिंह सुरावा 
को आज्ञा 
धन्यवाद

शनिवार, 24 सितंबर 2016

435 .... यात्रा




यथायोग्य सभी को
प्रणामाशीष

हर की पौड़ी
हर बार नया अनुभव
अभी हम यहाँ हैं

आप आनंद लें .... दूसरों के यात्रा वर्णन का



ई हालत में जब ‘दुख ने दुख से बात की’ तब ऊ लड़की को समझ में आया
कि ऊ फरसाण बेचने वाला गूँगा है. ऊ लगभग रोते हुये उसको इसारा से बताई
 कि उसका ई दुनिया में कोई नहीं है. एक मिनट सोचने के बाद ऊ गूँगा
उसको अपने साथ अपना घरे ले गया अऊर अपना माँ को सब बात बताया.
 ऊ लड़की रोते हुये अपना पूरा कहानी बताई.
बूढ़ी माँ उसको अपना गले से लगा ली



इसी बीच एक आदमी भीड़ का फायदा उठाते हुए
पिताजी के ज़ेब में हाथ डालकर उनका पर्स चुराने की कोशिश करने लगा
पर भीड़ में धक्का लगने से उसके हाथ से पर्स निचे गिर गया ।
मैंने पर्स उठाकर पिताजी को दिया और उस जेबकतरे से अवगत करवाया ।
फिर तो अन्य यात्रियों ने मिलकर उसको जमकर सबक सिखाया,
अगले स्टेशन पर उस जेबकतरे को पुलिस के हवाले कर दिया ।




नदी, पहाड़, झरने, तालाब, समुद्र, आकाश, पंछी, हवा ये सभी प्रकृति के अंग हैं
और मुझे ये काफी हद तक प्रभावित करते हैं। हवा कम हो चुकी थी
अब मैं भी बिलकुल तैयार था किसी नये नजारे को देखने के लिए
और उसमें से कुछ अच्छाईयां ग्रहण करने के लिए।
 या यूं कहें अपनी मां की गोद में जाने के लिए।



पर क्यों ऐसे जाना पसंद करते है,
पसंद करते है या उनकी मजबूरियाँ है,
या उनके अपने लोगों से जो दूरियाँ है,
उसी दूरी को मिटाने के लिए इतना दर्द सहते है,
यह उनके प्यार को दर्शाता है,
की आदमी परेशान तो होता है,
पर जनरल यात्रा करने से नही घबराता है.


पहले जब भी जाता तब सेकेंड क्लास स्लीपर में होता था,
 मगर इस बार मैं सेकेंड क्लास ए.सी. में था.. मुझे एक एक करके
सारे अंतर पता चल रहे थे जो मैं पहले बस दूसरों के
अनुभव से ही जान पाता था.. स्लीपर में जहां गरमी और पसीने कि
 बदबू होती थी वहीं यहां ए.सी. का सूकून था.. मगर जहां स्लीपर में
एक अपनापन होता था वहीं यहां आत्मकेन्द्रित लोग थे
जो ऐसा लग रहा था जैसे अपने ही अहम में सिमटे जा रहें हों..




सच ही किसी ने कहा है – जितना हम प्रकृति के करीब रहते हैं,
उतना ही संस्कृति से, अपनी जड़ों से जुड़े होते हैं औऱ जितना हम
प्रकृति से कटते हैं, उतना ही हम खुद से और अपनी संस्कृति से भी दूर होते जाते हैं।
रास्ते का यह विचार भाव रांची पहुंचते-पहुंचते सघन हो चुका था
 और स्टेशन से उतर कर महानागर की भीड़ के बीच मार्ग की
 सुखद अनुभूतियाँ धुंधली हो चुकीं थीं।






फिर मिलेंगे .... तब तक के लिए

आखरी सलाम

विभा रानी श्रीवास्तव 




शुक्रवार, 23 सितंबर 2016

434....भरमाती-भुलाती सभी भान डुबा लेती..

सादर अभिवादन..

लगता है..
जाग गया हिन्दुस्तान
गतिविधियाँ जारी हो गई..
गर.. सच मे जारी हो गई तो जारी रहे..
इच्छा है करांची घूमने की
वो भी बिना पासपोर्ट...
सादर..

चनिए चलें आज की चयनित रचनाओं की ओर..


अग्रलेख....
एक खत... साधना वैद
कुछ करिये मोदी जी ! अब तो कुछ करिये !
करोड़ों भारतवासियों की नज़रें आप पर टिकी हैं !
यह चुप्पी साधने का नहीं हुंकार भरने का समय आया है !
इस एक पल की निष्क्रियता सारी सेना का मनोबल
और सारे भारतवासियों की उम्मीदों को तोड़ जायेगी !
इतने वीरों के बलिदान को निष्फल मत होने दीजिये !
शान्ति और अहिंसा के नाम पर कब तक
हमारे वीर जवान अपनी जानें न्यौछावर करते रहेंगे




अमृत सा उसका पानी....रेखा जोशी
हिमालय पर्वत से
लहराती बलखाती
रवानी जवानी सी
उफनती जोशीली
बहती जा रही
अमृत सा उसका पानी



अच्छे दिनों की गज़ल....निखिल आनन्द गिरि
छप्पन इंची सीने का क्या काम है सरहद पर,
मच्छर तक से लड़ने में नाकाम है, अच्छा है।
बिना बुलाए किसी शरीफ के घर हो आते हैं
और ओबामा से भी दुआ-सलाम है, अच्छा है।



हो गई पूजा.........दिलबाग विर्क
कहीं न गया
तुझे याद किया है
हो गई पूजा ।



कविता महिलाओ से....विरम सिॆ़ंह
हर दिन सड़को पर मचली जाती हो ।
सिर्फ सिसकियाँ भर रह जाती हो ।।
फिर भी कहती अबला नही, हम है सबला ।
क्यों ओढ रखा है कायरता पर वीरता का चोला ।।

एक साल पहले..पाँच लिंकों का आनन्द में..
शिप्रा की लहरें..
अनंग गंध..प्रतिभा सक्सेना
गंध-मुग्ध मृगी एक निज में बौराई,
विकल प्राण-मन अधीर भूली भरमाई .
कैसी उदंड गंध मंद नहीं होती,
जगती जो प्यास ,पल भर न चैन लेती .

आज्ञा दें यशोदा को..
फिर मिलते हैं..

आज एक फ्राँसिसी जादू दिखाती हूँ
"Where Did She Go?"




गुरुवार, 22 सितंबर 2016

433....ख़ुद को मिटाने वाला नादान ढूँढता हूँ













आज कल सारे देश में...
पूर्वजों की श्रद्धा के  पावन दिन  चल रहे हैं...
कितना महान है ये देश...
हां मरने के बाद भी इतना आदर मिलता है...
हे कोई कुछ भी कहे...
अतीत की दी हुई नीव पर ही ...
वर्तमान  टिका होता है...
हिंदू धर्म की मान्यता के अनुसार अश्विन माह के कृष्ण पक्ष से अमावस्या तक अपने पितरों के श्राद्ध की परंपरा है। यानी कि 12 महीनों के मध्य में छठे माह भाद्र पक्ष की पूर्णिमा से (यानी आखिरी दिन से) 7वें माह अश्विन के प्रथम पांच दिनों में यह पितृ पक्ष का महापर्व मनाया जाता है। सूर्य भी अपनी प्रथम राशि मेष से भ्रमण करता हुआ जब छठी राशि कन्या में एक माह के लिए भ्रमण करता है तब ही यह सोलह दिन का पितृ पक्ष मनाया जाता है। उपरोक्त ज्योतिषीय पारंपरिक गणना का महत्व इसलिए और भी बढ़ जाता है क्योंकि शास्त्रों में भी कहा गया है कि आपको सीधे खड़े होने के लिए रीढ़ की हड्डी यानी बैकबोन का मजूबत होना बहुत आवश्यक है, जो शरीर के लगभग मध्य भाग में स्थित है और जिसके चलते ही हमारे शरीर को एक पहचान मिलती है। उसी तरह हम सभी जन उन पूर्वजों के अंश हैं अर्थात हमारी जो पहचान है यानी हमारी रीढ़ की हड्डी मजबूत बनी रहे उसके लिए हर वर्ष के मध्य में अपने पूर्वजों को अवश्य याद करें और हमें सामाजिक और पारिवारिक पहचान देने के लिए श्राद्ध कर्म के रूप में अपना धन्यवाद अर्थात अपनी श्रद्धाजंलि दें।

प्यार
हिम शीतल बर्फ की चादर को हम लहू से अपने गर्म किये
तुम सदा ख़ुशी निर्भीक रहो ये सोच प्राण उत्सर्ग किये
हमको रखकर अपने दिल में अब ऐसे लाल जन्मना तुम
दुश्मन का हृदय चीर लाये ए माता तेरे प्यार में ॥

पाकिस्तान मिट जायगा
कायर हो तुम अधम, सोते में उनकी जान ली
निर्जीव शव को मार कर, बहादुरी क्या कर ली ?
परिणाम नहीं जानते तुम, नतीजे से हो अनजान
कश्मीर होगा अब से देखो, भारत देश की शान
पाकिस्तान का मिट जायगा, सभी नामो निशान |
गर हिम्मत हो तुम में तो. मैदाने जंग में आओ 
बीरता से मैदाने जंग में अपनी बहादुरी दिखाओ |

छोटा सा चाँद
किरणों की मेखला
बादलों में हो बिजलियां
आओ सपनों से शब्द बुने
भावों से रंग चुने
कहाँ हो सजनिया

पलकों के मुहाने पे समुन्दर न देख ले ...
ऐसे न खरीदेगा वो सामान जब तलक
दो चार जगह घूम के अंतर न देख ले
मुश्किल से गया है वो सभी मोह छोड़ कर 
कुछ देर रहो मौन पलटकर न देख ले
नक्शा जो बने प्याज को रखना दिमाग में
दीवार कभी तोड़ के अन्दर न देख ले 

यह बदलाव नहीं तो और क्या है ~१
ग़ौर से देखा जाए तो आजकल का बचपन है क्या, सुबह उठे स्कूल चले गए। वहाँ से आए नहा धोकर खाया पिया बहुत हुआ तो ग्रहकार्य किया और भिड़ गए टीवी देखने या लेपटॉप पर खेलने, कुछ नहीं मिला तो मोबाइल पर ही शुरू हो गए और जब उससे भी मन भर गया तब याद आती है इस दुनिया में उनके कुछ दोस्त भी हैं। पर फ़ायदा क्या उनका भी हाल वैसा ही है जैसा मैंने उपरोक्त पंक्तियों में व्यक्त करने का प्रयास किया है। आश्चर्य तो मुझे तब हुआ जब गणपति महोत्सव की इतनी धूमधाम और आस -पास हो रही हलचल के बावजूद बच्चों में कोई ख़ास उत्साह या लगाव दिखाई नही दिया। ना बच्चों की आँखों में त्यौहार के प्रति वो चमक ही दिखाई दी जो हम अपने समय में महसूस किया करते थे।

आज बस इतना ही...
आज आप को प्रतीक्षा मेरी नहीं थी...
पर अब प्रत्येक गुरुवार को मैं ही आऊंगा...
कभी-कभार बदलाव करना पड़ता है...

चलते-चलते...
जब मतलबी ये दुनिया रिश्तों से क्या है मतलब
इन मतलबों से हटकर इन्सान ढूँढता हूँ
एहसास उनका सच्चा गिरकर जो सम्भलते जो
अनुभूति ऐसी अपनी पहचान ढूँढता हूँ

धन्यवाद।













बुधवार, 21 सितंबर 2016

432...दुकान के अंदर एक और दुकान को खोला जाये

सादर अभिवादन
आज का काम मेरे जिम्मे

कुछ उथल-पुथल तो हो रही है
कोई नई बात नहीं..
उथल-पुथल का होना..
मैं समझता हूँ कि ये
उथल-पुथल का सिलसिला..
सन् उन्नीस सौ सैंतालीस के बाद
प्रारम्भ हुआ..और पड़ोसी के 
जीवित रहते तक अविराम होते रहेगा
...
चलते हैॆ आज की रचनाओं की ओर....

पहली बार....


ऐ दिल है मुश्किल......पारूल कनानी
अपनी ख़ामोशी से
आकर,मेरी ख़ामोशी सिल
कहते नहीं बनता अब
ऐ दिल है मुश्किल !!



पाकिस्तान की रगों में भारत-घृणा का खून है। वह एक बैचेन देश है, जिसने अपने सपने तो पूरे किए नहीं और न खुद की एकता कायम रख सका। अपने लोगों पर दमन-अत्याचार की कहानी उसने बंटवारे के बाद फिर दोहराई जिसका परिणाम बंगलादेश के रूप में सामने आया। आज भी वह बलूचिस्तान, गिलगित और पीओके में यही कर रहा है। जम्मू और कश्मीर में भी उसे शांति सहन नहीं होती। भारत में रहकर प्रगति कर रहे इलाके उसे रास नहीं आते। यहां हो रही चौतरफा समृद्धि से उसे डाह होती है। बाकी देशों की तुलना में पाकिस्तान की जलन और कुढ़न ज्यादा है, क्योंकि वह भारत से अलग होकर बना देश है। भारत विरोध उसके डीएनए में है।


हाईकू..किन्नर...डॉ. प्रतिभा स्वाति
वो जब आएं
दामन में दुआएं
देकर जाए
..
गोद में लाल
वो चूम गए भाल
सब निहाल
...
विधि ने रचा
सारा संसार घर
जियो किन्नर




तृषा जावै न बुंद से
प्रेम नदी के तीरा
पियसागर माहिं मैं पियासि
बिथा मेरी माने न नीरा

मैं धृतराष्ट्र 
देखता रहा , सुनता रहा 
और द्रोपदी के चीरहरण में 
सभ्यता , संस्कृति
तार तार हुयी 
धर्म के सारे अध्याय बंद हुए ,

दुनिया की अंधी दौड़ की होड़ में तुमको न झोकेंगे 
तू सोच समझकर मन से करना हम करने से न रोकेंगे 
दुनिया की नज़रों में उठकर क्या जीवन भर पछताना 
बस बेटा तू अपनी नज़रों में साबित हो जाना 
मेरे लिए मायने रखता है तेरा एक दिन अन्वित हो जाना 


अति मीठे को कीड़ा खा जाता है।
अति स्नेह मति बिगाड़ देता है।।

अति परिचय से अवज्ञा होने लगती है।
बहुत तेज हवा से आग भड़क उठती है।।


सुलेख........ गोपेश जैसवाल 
‘गीतिका, तुम तो बहुत प्यारी बच्ची हो, इतना अच्छा बोलती हो. पर तुमने ये गन्दी बात क्यों की?
तुमको अपने पापा के सिग्नेचर करने की क्या ज़रुरत थी?’
परिमू साहब का सवाल और उनका गुस्सा बेचारी गीतिका के तो पल्ले पड़ा नहीं
 पर मैं सब कुछ समझ गया. मैंने शरमाते हुए जवाब दिया –
‘परिमू साहब, ये सिग्नेचर मेरे ही हैं.’.                        
अब परिमू जी का चेहरा देखने लायक था.

आज का शीर्षक....
मालिक की दुकान 
के अंदर खोल
कर एक अपनी दुकान
दुकान के मालिक का
माल मुफ्त में एक
के साथ एक बेचा जाये
मालिक से की जाये
मुस्कुरा कर मुफ्त
के बिके माल की बात
साथ में बिके हुऐ
दुकान के माल
से अपनी और
ठोके पीटे साथियों
की पीछे की जेब
को गुनगुने नोटों
की गर्मी से थोड़ा
थोड़ा रोज का रोज
गुनगुना सेका जाये ।

आज्ञा दें दिग्विजय को..
फिर आएँगे...




मंगलवार, 20 सितंबर 2016

431...फिर एक बार देश ने आंतकी हमला झेला

जय मां हाटेशवरी...

कश्मीर के उरी सेक्टर में चरमपंथियों द्वारा किये गये हमले से...
मन आज बहुत आहत है...
अब तो अति हो गयी पाकिस्तान...

युद्ध-विराम की आड़ में किसी ने खुशहाली को मातम में बदल डाला  है,
सारे नियमों को ताक  पर रखकर पीठ में छुरा  घोंप  डाला है,
घाटी में पैदा कर दिया हैं चारों ओर  अशांति का हाल ,
बना दिया लोगों को शरणार्थी अपने ही देश में,किसकी  है ये चाल ?

पीपल का पत्ता-- हृदय रोग का रामवाण इलाज
 पीपल के वृक्ष की महानता का वर्णन करते हुये भारतीय वाग्मय के प्राण भगवान श्री कृष्ण ने जो कि याेगीराज भी कहलाते हैं ने गीता में कहा है कि मैं वृक्षों में अश्वत्थ का वृक्ष हूँ, अर्थात भारतीय आयुर्वेद के अनुसार संसार में एक प्रकार से कहा जाए तो पीपल प्रभु के समस्त गुणों का वाहक हैं।

ह्दय संबंधी समस्याअों या हार्ट अटैक आ जाने की स्थि‍ति में पीपल के पत्तों का काढ़ा बनाने के लिए
list of 4 items
1. सबसे पहले पीपल के 15 पत्ते तोड़ लें, जो हरे, आकार में बड़े और पूरी तरह से विकसित हो।
2. सभी पत्तों के ऊपर की चौंच व नीचे का डन्सल का भाग कैंची से काटकर अलग कर दें।
3. अब पत्तों को पानी से धो लें और लगभग एक गिलास पानी में धीमी आंच पर पकाएं।
4. जब यह पानी उबलकर एक-तिहाई रह जाए, तब उसे ठंडा करके छान लें, और फ्रीज या अन्य किसी ठंडे स्थान पर रख दें।

फिर एक बार
फिर एक बार देश ने आंतकी हमला झेला
फिर एक बार कई सैनिक शहीद हो गए
फिर एक बार परिबारों ने अपनोँ  को खोने का दंश झेला
फिर एक बार गृह , रक्षा मंत्री ने घटना स्थल का दौरा किया
फिर एक बार हाई लेवल मीटिंग की गयी
फिर एक बार
सभी दलों ने घटना की निंदा की

 मेरा हाल सोडियम-सा ’ [ लम्बी तेवरी, तेवर-शतक ] +रमेशराज
मेरा ‘पर’ जब-जब बाँधा  
आसमान को तका लेखनी । 6
मन के भीतर घाव हुआ  
मैं दर्दों से भरा लेखनी । 7
आदमखोरों से लड़ना
तुझको चाकू बना लेखनी । 8
शब्द-शब्द आग जैसा
कविता में जो रखा लेखनी । 9

धिक! धिक! जन-गण-मन नायक!
क्यों शर फिर सीना तान रहा?
क्यों सिमटा मेरा वितान रहा?
क्यों सहानुभूति उपजे मन में
जिन पर वर्षों अभिमान रहा?
छोड़ो दुख का जाप्य जयद
लेकर निषंग रण में उतरो,
जो विपदाएँ आएं पथ में
बन महादेव कण-कण कुतरो।

पतन - Hindi Kavita By Ram Lakhara Vipul
नव सृजनता को लिए चले थे,
नित नग्नता को पढ़ रहे
लगता नहीं क्या हड़प्पा और
जोदड़ों की ओर हम बढ़ रहे
आज बस इतना ही...

मुस्कुरा कर विदाई दे मुझको
वक़्ते-आखिर है , सोचता क्या है?
धन्यवाद।












सोमवार, 19 सितंबर 2016

430...देखा कुछ ? मेरे देखे को देख कर क्या करोगे

सादर अभिवादन

शारदीय नवरात्रि 
के लिए ग्यारह दिन
की प्रतीक्षा और


और आज ..चुनिन्दा रचनाएँ आपकी प्रतीक्षा मे...


ओ म्हाने बालपने मे मत दे देजो रे माँ 
पढाई करवा म्हें जास्याँ
ओ माँ पढाई करवा म्हें जास्याँ 


यथासाध्य विधि पूर्वक पूजता है। उसकी आस्था व मान्यता होती है कि उसके इष्ट साक्षात उसके घर पधारे हैं।
इसीलिए विदाई वाले दिन उसकी आँखों के आंसू रुकते नहीं हैं। खाने का एक कौर उसके गले से नीचे नहीं उतरता। उसे ऐसा  लगता है जैसे उसके घर का कोई प्रिय सदस्य दूर जा रहा हो। उसको फिर वापस  आने की याद दिलाते उसकी जीभ नहीं थकती। वहीँ  दूसरी ओर बड़े, विशाल, भव्य धार्मिक आयोजनों की वुकत वैसी ही रह गयी है जैसे नाटक-नौटंकी, सर्कस, मेले-ठेलों की होती है।  फ़िल्मी गाने, अनियंत्रित खाना-पीना, असंयमित व्यवहार आम बात हो गयी है। यही कारण कि विसर्जन के समय हमें प्रतिमाओं की दुर्दशा का साक्षी बनना पड़ता है। नदी, तालाब, सागर में उन्हें विसर्जित नहीं किया जाता फेंक कर छुटकारा पाया जाता है।



ताना बाना..............रेवा
कुछ प्रश्न हैं जो
मन को बार बार
परेशां करते हैं ......
कागज़ कलम उठाती  हूँ




तुम्हारे कंठ में 
चिरकाल से बसी
इस घुटी हुई सिसकी के
आवेग की तीव्रता से
स्तब्ध हूँ मैं ! 


आसान नहीं होता.......इन्दु रवि सिंह
मर जाना सबसे आसान है
लोग कहते हैं
लेकिन  
मरने की
चाह रखना
भले आसान हो




पूछा तो कभी होता 
दिल से जो मेरे ये, 
किस के लिए रोता ? 

सोने भी नहीं देतीं 
यादें अब तेरी 
रोने भी नहीं देतीं 

आज का शीर्षक..

सब लोग एक साथ 
एक ही चीज को 
एक ही नजरिये 
से क्यों देखें 
बिल्कुल मत देखो 
सबसे अच्छा 
अपनी अपनी आँख 
अपना अपना देखना 
....
दें इज़ाज़त यशोदा को
और देखिये ये वीडिओ
जो रोमांचक भी है
और ललचाता भी है.. काश हम भी ड्राईव्ह कर पाते


Driving On The Atlantic Ocean Road In Norway




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