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बुधवार, 27 जुलाई 2016

376...बारिशों का पानी भी कोई पानी है नालियों में बह कर खो जाता है


सादर अभिवादन
लीजिए आज आनन्द
सावन के महीने का

धर्म और अध्यात्म का महीना
हर्ष और उल्हास का महीना
मिलन व बिछोह का महीना

पता नहीं क्या-क्या नही किया
इस निगोड़े सावन के महीने नें

‘एक एवं तदा रुद्रो न द्वितीयोऽस्नि कश्चन’ सृष्टि के आरम्भ में एक ही रुद्र देव विद्यमान रहते हैं, दूसरा कोई नहीं होता। वे ही इस जगत की सृष्टि करते हैं, इसकी रक्षा करते हैं और अंत में इसका संहार करते हैं। ‘रु’ का अर्थ है-दुःख तथा ‘द्र’ का अर्थ है-द्रवित करना या हटाना अर्थात् दुःख को हरने (हटाने) वाला। शिव की सत्ता सर्वव्यापी है। 


टूटेंगे मगर फिर भी वो पछताएँगे नहीं
कह के जो कभी बात को जुठलाएँगे नहीं

रिश्तों का यही सच है इसे गाँठ बाँध लो
जो प्रेम से सींचोगे तो मुरझाएँगे नहीं

दिन सावन के.........विनोद रायसरा
दिन सावन के
तरसावन के
कौंधे बिजली
यादें उजली
अंगड़ाई ले
सांझें मचली

आते सपने
मन भावन के...


मच्छर ने नोच   खाया  सावन  का  महीना ।
मैं रात भर  खुजाया  सावन   का  महीना ।।

जब गर्म हुआ तड़का कीड़ों ने जम्प मारा ।
मेथी समझ के खाया सावन  का महीना ।।

चाहे छूट गए हो रिश्ते, चाहे रूठ गए हो प्यारे
मत बनना इनकी खातिर कैसे भी हत्यारे
खूब संजोये होंगे सपने, खूब मिले होंगे जिज्ञासु
मंजिल पाने की कोशिश में खूब बहाये होंगे आंसू

लो, सावन बहका है 
बूँदों पर है खुमार, मनुवा भी बहका है। 


एक पागलपन भी
पोकेमॉन गो और अरहर की दाल....अंशुमाली रस्तोगी
वाकई इंसान की 'दीवानगी' का कोई ठौर नहीं। कब, कहां, किस पर 'मेहरबान' हो जाए। एक तरफ लोगों में पोकेमॉन गो को लेकर क्रेज है तो दूसरी तरफ रजनीकांत की तस्वीरों को दूध से नहलाया जा रहा है।
फिलहाल, मैं पोकेमॉन गो के बदले मुफ्त अरहर की दाल पाने के इंतजार में हूं। देखना है, कब तक नसीब होती है।



आज का शीर्षक..
बरसात के मौसम में 
यूँ ही खुला छोड़ कर 
चले जाने के बाद 
जब कोई लौट कर 
वापस आता है 
कई दिनों के बाद 
गली में पाँवों के 
निशान तक 
बरसते पानी के साथ 
बह चुके होते हैं 

सावन का महीना
और कोढ़ में खाज
अंक भी है
तीन सौ छिहत्तरवाँ
लिंक पर लिंक लगाए जा रही हूँ
कहती हूँ अपने आप से
अब बस भी कर यशोदा




7 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत मेहनत की है इस निखरी हुई प्रस्तुति में । आभारी है 'उलूक' उसके सूत्र को शीर्षक देने के लिये ।

    जवाब देंहटाएं
  2. बादल हैं कि बरसते ही जा रहे हैं और उस पर आपकी यह सावनी प्रस्तुती..जैसे सोने में सुहागा..गीत सुनकर वाकई बारिश में भीगने का मन हो रहा है

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत सुन्दर सावनी गीत प्रस्तुति के साथ सुन्दर सावनी फुहार भरी प्रस्तुति हेतु धन्यवाद!

    जवाब देंहटाएं
  4. मतलब
    कल मन था
    आपका
    प्रस्तुति बनाने का
    गीत बढिया चुना..

    जवाब देंहटाएं
  5. सावन के इस गीत का तो आनद अलग ही है ... अच्छे लिंक्स ...
    आभार मुझे शामिल करने का ...

    जवाब देंहटाएं
  6. बारिश की तरह
    सुहानी
    प्रस्तुति

    जवाब देंहटाएं

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