निवेदन।


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रविवार, 31 जुलाई 2016

380...ज़िक्र खुद अपने गुनाहों पे किया करता हूँ

सुप्रभात
सादर प्रणाम 
जुलाई 2016 की अन्तिम
हलचल प्रस्तुति

रंग, रूप ,वेश,भाषा चाहे अनेक है ....2

बेला ,गुलाब जूही चम्पा चमेली 
प्यारे प्यारे फूल गूंथे माला मे एक है ।

आइए अब प्रस्तुत है आज की 
नई -पुरानी रचनाएँ 


प्रेमचंद (३१ जुलाई, १८८० - ८ अक्टूबर १९३६) 
हिन्दी और उर्दू के महानतम भारतीय लेखकों में से एक हैं। मूल नाम धनपत राय श्रीवास्तव वाले प्रेमचंद को नवाब राय और मुंशी प्रेमचंद के नाम से भी जाना जाता है। उपन्यास के क्षेत्र में उनके योगदान को देखकर बंगाल के विख्यात उपन्यासकार शरतचंद्र चट्टोपाध्याय ने उन्हें उपन्यास सम्राट कहकर संबोधित किया था। प्रेमचंद ने हिन्दी कहानी और उपन्यास की एक ऐसी परंपरा का विकास किया जिसने पूरी सदी के साहित्य का मार्गदर्शन किया। आगामी एक पूरी पीढ़ी को गहराई तक प्रभावित कर प्रेमचंद ने साहित्य की यथार्थवादी परंपरा की नींव रखी। उनका लेखन हिन्दी साहित्य की एक ऐसी विरासत है जिसके बिना हिन्दी के विकास का अध्ययन अधूरा होगा। वे एक संवेदनशील लेखक, सचेत नागरिक, कुशल वक्ता तथा सुधी संपादक थे। बीसवीं शती के पूर्वार्द्ध में, जब हिन्दी में की तकनीकी सुविधाओं का अभाव था, उनका योगदान अतुलनीय है। प्रेमचंद के बाद जिन लोगों ने साहित्‍य को सामाजिक सरोकारों और प्रगतिशील मूल्‍यों के साथ आगे बढ़ाने का काम किया, उनमें यशपाल से लेकर मुक्तिबोध तक शामिल हैं।

अरे ! तुम आ गए
पर अब क्यों आये
अब इस सांसों के
थमने की घड़ी में
तुम्हारा आना भी
बड़ा ही बेसबब है
सच अब यूँ आना
भी न थाम सकेगा
मेरी टूटती सांसों की
थरथराती सी डोर


     ठूंठ
मुझे बहुत भाते हैं वे पेड़,
जिन पर पत्ते, फूल, फल
कुछ भी नहीं होते,
जो योगी की तरह
चुपचाप खड़े होते हैं -
मौसम का उत्पात झेलते.
इन्हें देखकर मुझे
दया नहीं आती,
क्योंकि मैं जानता हूँ
कि ये पेड़,
जो मृतप्राय लगते हैं,


बिखर गया अब तक बहुत कुछ इरादों की तरह,
टूट रहा है जीवन अब तो वादों की तरह।

सूना है आलम छाई है ख़ामोशी यहां,
होती है बातें भी मूक संवादों की तरह।

आती है लब पर अब भी मुसकान कभी कभी,
घटना ये भी होती है अपवादों की तरह।

यह दुनिया 
ज्यों अजायबघर 
अनोखे दृश्य 
अद्भुत संकलन 
विस्मयकारी 
देख होते हत्प्रभ ! 
अजब रीत 
इस दुनिया की है 
माटी की मूर्ति 
देवियाँ पूजनीय 
निरपराध 
बेटियाँ हैं जलती 

    

ज़िक्र खुद अपने गुनाहों पे किया करता हूँ

ज़िक्र खुद अपने गुनाहों पे किया करता हूँ,
कुछ सवालात सजाओं पे किया करता हूँ |

जब भी अल्फासों से लुट कर मैं गिरा हूँ इतना,
खुद मैं इज़हार खताओं पे किया करता हूँ |


लोग कहते हैं ये शीशे से भी नाज़ुक है दिल,
अब मैं हर बात दुआओं पे किया करता हूँ |


अब दिजिये 
आज्ञा
विरम सिंह सुरावा
सादर 

शनिवार, 30 जुलाई 2016

379 .... बारिश







सभी को यथायोग्य
प्रणामाशीष

जुलाई खत्म ..... सावन गुजर रहा हो
और 
हरियाली छाई नहीं पोस्ट में
व्यर्थ मेहनत होगी न




गई बिजली , बरसात भी बस आने को है।
बरसता पानी अब मल्हार छेड़ जाने को है।

छत पर टपकेंगी बूँदे ,रात भर रुक कर
कोई है जो  आमादा कुछ सुनाने को है।

याद आएगी अपने साथ कई याद लिए
इक घनेरी - सी घटा टूटकर छाने को है।














तुम आसमान में घूमते फिरते
पर मेरे पास क्यों नहीं आते ?
तुम यहाँ आ कर देखो
कि ये बूँदें कितनी सुन्दर हैं ।
क्या मजा है आसमान में
तुम भी मन में करो विचार ।














पत्तों के चादर ओढ़े
सिमटे पर अपने आप में
सैकड़ों पंक्षियों के जोड़े
जो सिकुड़े एक दूसरे से लिपटे
दुबके हैं, समेटे
निःशब्द अपनी प्यास मिटाने
नम हो जाने और नये जीवन को
अपनी छाँव में अँकुरित कर
मोहब्बत को सज़ाने में मशग़ूल








डालियों में होती है बेचैनी
शायद चीर कर टहनियों के बाजुओं को
कोई निकालना चाहता है बाहर
एक नए सृजन के लिए।











फिर मिलेंगे .... तब  तक के लिए
आखरी सलाम




विभा रानी श्रीवास्तव




शुक्रवार, 29 जुलाई 2016

378...श्रेष्ठ धर्म कौन सा है?...

जय मां हाटेशवरी...

आज हर तरफ धर्म पर चर्चा हो रही है...
सभी अपने धर्म  को श्रेष्ठ  बता रहे हैं...
इस लिये आज की प्रस्तुति का आरंभ...
इस छोटे से प्रसंग से...
   एक राजा था।  उसने  दूर-दूर खबर कर कि जो भी धर्म श्रेष्ठ होगा, मैं उसे स्वीकार करूंगा। अब तो उसके पास एक से बढ़कर एक विद्वान आने लगे, जो अपने धर्म की श्रेष्ठता का बखान करते हुए दूसरे के धर्म के दोष गिनाते। लेकिन राजा के सामने कुछ सिद्ध न हो पाया कि कौन धर्म चरम धर्म है। कौन सर्वोत्कृष्ट धर्म है? जब यही सिद्ध न हुआ तो राजा अधर्म के जीवन में जीता रहा। उसने कहा, जिस दिन सर्वश्रेष्ठ धर्म उपलब्ध हो जाएगा, उस दिन मैं धर्म का अनुसरण करूँगा।  जब तक सर्वश्रेष्ठ धर्म का पता ही नही है, तो मैं कैसे अपना जीवन को छोडू और बदलूँ? तो जीवन तो वह अधर्म में जीता रहा, लेकिन सर्वश्रेष्ठ धर्म की खोज में पंडितो के विवाद को सुनता रहा।  ऐसे ही दलीले सुनते-सुनते राजा का जीवन बीतने लगा।
फिर तो राजा बूढ़ा होने लगा और घबरा गया कि अब क्या होगा? अधर्म का जीवन दुःख देने लगा। लेकिन जब सर्वश्रेष्ठ धर्म ही न मिले, तो वह चले भी कैसे धर्म की रह पर?
अंतत: वह एक प्रसिद्ध फकीर के पास गया। राजा ने संत को अपनी परेशानी बताते हुए कहा - मैं सर्वश्रेष्ठ धर्म की खोज में हूं। लेकिन आज तक मुझे वह नहीं मिल सका है। फकीर ने कहा - सर्वश्रेष्ठ धर्म! क्या संसार में बहुत से धर्म होते हैं, जो श्रेष्ठ और अश्रेष्ठ धर्म की बात उठे, धर्म तो एक है। कोई धर्म अच्छा, कोई धर्म
बुरा, यह तो होता ही नहीं। सर्वश्रेष्ठ का सवाल ही नहीं है। राजा बोला, लेकिन मेरे पास तो जितने लोग आए, उन्होंने कहा हमारा धर्म श्रेष्ठ है। उस फकीर ने कहा, जरुर उन्होंने धर्म के नाम से मैं श्रेष्ठ हूँ यही कहा। उनका अहंकार बोल होगा। धर्म तो एक है, अहंकार अनेक है। राजा से उसने कहा, जब भी कोई पथ से बोलता है किसी
धर्म से बोलता है, तो समझ लेना, वह धर्म के पक्ष में नही बोल रहा है, अपने पक्ष में बोल रहा है। और जहाँ पक्ष है, जहाँ पथ है, वहाँ धर्म नही होता। धर्म तो वही होता है जहाँ व्यक्ति निष्पक्ष होता है। पक्षपाती मन में धर्म नही हो सकता है।
   राजा प्रभावित हुआ।उसने कहा, तो फिर मुझे बताओ, मैं क्या करु? उस फकीर ने कहा- आओ नदी के किनारे चलते हैं वहीं बताऊंगा। नदी पर पहुंच फकीर ने कहा - जो सर्वश्रेष्ठ नाव हो तुम्हारी राजधानी की , तो उसमें बैठ कर उस तरफ चलें। राजा ने कहा यह बिलकुल ठीक है। राजा जाए तो सर्वश्रेष्ठ नाव आनी चाहिए। बीस-पच्चीस जो अच्छी से अच्छी नावें थी, वे बुलाई गई। और वह फकीर भी अजीब था, एक-एक नाव में दोस निकलने लगा कि इसमें यह खराबी है, इसमें यह दाग लगा हुआ है। यह तो आपके बैठने के योग्य नही है। राजा भी थक गया। सुबह से साँझ हो गई। भूखा प्यासा राजा फकीर से बोला - क्या बकवास लगा रखा है, इनमें से तो कोई भी नाव पार करा देगी और अगर नाव पसंद नहीं है, तो खुद ही तैर कर पार कर लें, छोटी सी नदी तो है। फकीर हंसने लगा और बोला - यही तो मैं सुनना चाहता हूं। राजन! धर्म की कोई नाव नहीं होती। धर्म तो तैरकर ही पार करना होता है, खुद। कोई किसी दूसरे को बिठाकर पार नहीं करा सकता।
   धर्म की कोई नाव नही होती। और जो कहता हो धर्म की नाव  होती है, समझ लेना, धर्म से उसे कोई मतलब नहीं, कोई नाव चलाने वालो का व्यापारी होगा वह, जो नाव चलाने वाले है, उनका व्यपार है उनकी कोई नाव नही है। धर्म तो तैर कर ही पार करना होता है-व्यक्तिगत।
     वे जल्दी नदी में उतरे और पर हो गए। वह थोड़ी देर की बात थी, लेकिन नाव की प्रतीक्षा में और अच्छी नाव की खोज में सारा दिन व्यर्थ हुआ था।

अब पेश है...
कुछ पढ़ी हुई रचनाओं में से...
कुछ चुनी रचनाएं...

आज हम फिर बँट गए ज्यों गड्डियां हो तास की
s320/playing-cards
आज हम महफूज है क्यों दुश्मनों के बीच में
आती नहीं है रास अब दोस्ती बहुत ज्यादा पास की
बँट  गयी सारी जमी ,फिर बँट  गया ये आसमान
आज  हम फिर  बँट गए ज्यों गड्डियां हो तास की

हमारी दुनियां न्यारी रे
सभी को, कष्टों में दरकार
तभी आता ईश्वर का ध्यान
मुसीबत में ही आते याद
सिर्फ परमेश्वर के दरबार ,
चर्च हो या मस्जिद प्यारे
हर भवन में , ईश्वर न्यारे ,
पीठ पर है निर्भय अहसास
आस्था के , वारे न्यारे !

कारण
दर्द नहीं है जिज्ञासा कि जिसको छूकर देखा जाये
नहीं दर्द कि परिभाषा कि जिससे समझ में आ जाये
ये तो उपपरिणाम है किसी लक्ष्य के पीछे का
जितनी ज्यादा हो लगी लगी ये उतना ही बढ़ता जाये।
जितनी गहराई से सोचा कि इस मंज़िल को पा जाये
दुनिया सारी छूटे मुझसे पर ये आँचल में आ जाये

सुनो ज़िन्दगी
हूँ ,इस इंतजार में
अभी कोई पुकरेगा मुझे
और ले चलेगा
कायनात के पास .......
जहाँ गया है सूरज
समुंदर की लहरों पर हो कर सवार
"क्षितिज" से मिलने

हम बात तुम्हारी क्यों माने ?
जो पड़ा सामने  एकाक्षी  या दिया किसी ने अगर  छींक
तुमको वापस रुकना  होगा ,ये शकुन हुआ है नहीं ठीक
ये तो नित की घटनाएं है ,होती  रहती  है  अनजाने
हम बात तुम्हारी क्यों माने ?



मन के कपाट....रश्मि शर्मा 
 अब चलूं कुणाल के पसंदीदा पनीर की सब्‍जी और बूंदी रायता बना लूं। आज वो जल्‍दी लौटेंगे, मैं जानती हूं। शादी के गुजरते सालों में प्‍यार कम हो न हो, कहीं दबता चला जाता है। हम अपनी-अपनी उम्‍मीद पूरी नहीं होने का रोना तो रोते हैं मगर कोई पहल नहीं करते। आज मैं शुरूआत कर ही दूं। कुणाल जो अपने मन के कपाट बंद करने लगे हैं वो, अब मैं उसे खोलकर रहूंगी, झगड़े से नहीं, प्‍यार से।


प्रकृति नर्तन
दिमाग से निकलीं ये सारी उपजें समग्र रूप से व्यर्थ हैं। इनका कहीं कोई मोल नहीं है। जरा अपने चारों ओर देखिए तो। प्रकृति ने श्रावण के रूप में कितना मोहक रूप धारण किया हुआ है। दो-तीन दिन बादलों से ढका आकाश जब कुछ समय या एक दिन के लिए सूर्यप्रकाश में दमकता है तो धरती-आकाश सहित पेड़-पौधों की हरियाली कितनी स्वच्छ और कांतिवान लगती है। यही नैसर्गिक उपक्रम हैं जिन्हें आत्मसात कर हम अपने मानुष होने का उद्देश्य समझ सकते हैं। यह काम भारत देश में राजनीति करने या नौकरी ढूंढने जैसा उलझा हुआ नहीं है। यह उपलब्धि तो आपको अपनी दृष्टि में बदलाव करते ही प्राप्त हो जाएगी।

नन्हां मित्र
जब यह बड़ा होगा
हरा भरा वृक्ष होगा
यहीं आ कर
विश्राम भी करूंगी |

माया ममता मोहिनी ,जिन बिन दंता जग खाया , मनमुख खादे ,गुरमुख उबरै ,जिन राम नाम चित लाया
कई आस्थाएं ,विश्वास  वहीँ अटके हुए हैं जहां मोहम्मद साहब के समय थे ,कई मायावतियां मनमुखि ,सुमुखियाँ गुरु -विहीन,दिशाहीना , आत्महीन वहीँ अटकी हुईं हैं ,संसद में आज उनकी ही अनुगूंज सुनाई देती है।
जेहाद गुरु मुखी होना है अवगुणों के खिलाफ जंग हैं मन का सुख ,मन की गुलामी नहीं हैं। मनमानी नहीं है ,भटकाव नहीं है त्याग है अवगुणों का।













कलाम को सलाम
प्रारम्भिक जीवन में अभाव के बावजूद वे किस तरह राष्ट्रपति के पद तक पहुँचे ये बात हम सभी के लिये प्रेरणास्पद है। उनकी शालीनता, सादगी और सौम्यता किसी महापुरुष
से कम नही है। डॉ. कलाम बच्चे हों या युवा, सभी में बहुत लोकप्रिय रहे हैं। अपने सहयोगियों के प्रति घनिष्ठता एवं प्रेमभाव के लिये कुछ लोग उन्हे ‘वेल्डर ऑफ पिपुल’ भी कहते हैं। देश के हर युवक हर बच्चे के प्रेरणा श्रोत हैं। उनका कहना था “ सपने देखना बेहद जरूरी है, लेकिन सपने देखकर ही उसे हासिल नही किया जा सकता।

आज के लिये इतना ही काफी है...
मिलते रहेंगे...
धन्यवाद।











 

गुरुवार, 28 जुलाई 2016

377....शिव की तीसरी आँख और उसके खुलने का भय अब नहीं होता है

इस बार फिर मैं
आपके समक्ष हूँ
सादर अभिवादन स्वीकार करें..

प्रस्तुत है 
आज-कल व 
पीढ़ियों पहले 
पढ़ी चुनी रचनाएँ.....


हिंद - हिन्दुस्तानी - हिंदी....विभा दीदी
बिहार में मगही ,मैथली,भोजपुरी के संग हिंदी भी बोली जाती है ..... या यूँ कहें तो ज्यादातर हिंदी ही बोली जाती है .... बदलते माहौल का असर रहा तो कुछ सालों के बाद ज्यादातर अंग्रेजी ही बोली सुनी जाएगी .... जगह जगह मशरूम कुकुरमुत्ते की तरह अंग्रेजी स्कूलों का खुलने का असर और बच्चों पर दबाव कि वे अंग्रेजी में गिटपिट करें






यूँही बारिश में कई नाम लिखे थे...अनुपम चौबे
यूँही बारिश में कई नाम लिखे थे ,
अपने हाथों से कई पैगाम लिखे थे 
अब तक जमी हैं वो यादों की बुँदे ,


झूमती बदली............रजनी मोरवाल
खिड़की पर झूल रही जूही की बेल
प्रियतम की आँखों में प्रीति रही खेल, 
साजन का सजनी पर फैल गया रंग।

ढाई आखर भी पढ़ सकता...अनीता
उसका होना ही काफी है
शेष सभी कुछ सहज घट रहा,
जितना जिसको भाए ले ले
दिवस रात्रि वह सहज बंट रहा !

१७ वां कारगिल विजय दिवस....शिवम् मिश्रा
खामोश है जो यह वो सदा है, वो जो नहीं है वो कह रहा है , 
साथी यु तुम को मिले जीत ही जीत सदा |
बस इतना याद रहे ........ एक साथी और भी था || 


मन के कपाट....रश्मि शर्मा 
 अब चलूं कुणाल के पसंदीदा पनीर की सब्‍जी और बूंदी रायता बना लूं। आज वो जल्‍दी लौटेंगे, मैं जानती हूं। शादी के गुजरते सालों में प्‍यार कम हो न हो, कहीं दबता चला जाता है। हम अपनी-अपनी उम्‍मीद पूरी नहीं होने का रोना तो रोते हैं मगर कोई पहल नहीं करते। आज मैं शुरूआत कर ही दूं। कुणाल जो अपने मन के कपाट बंद करने लगे हैं वो, अब मैं उसे खोलकर रहूंगी, झगड़े से नहीं, प्‍यार से। 



एक हफ्ते पहले...सदा
अर्थ बोलते हैं जब !
शब्‍द प्रेरणा होते हैं 
जब मन स्‍वीकारता है उन्‍हें 
तो अर्थ बोलते हैं उनके 
आरम्‍भ होती हैं पंक्तियाँ 
जन्‍म लेती है कविता





एक साल पहले......कविता रावत
जब कोई मुझसे पूछता है....... 
'कैसे हो?'
तो होंठों पर ' उधार की हंसी'
लानी ही पड़ती है
और मीठी जुबां से
'ठीक हूँ '
कहना ही पड़ता है



और अंत मे शीर्षक रचना..
पता नहीं कितने पहले....डॉ. सुशील जोशी
हर कोई तुझे छोड़ कर 
शिव होता है 
तीसरा नेत्र जिसका 
हर समय ही 
खुला होता है 
तू पढ़ रहा होता है 
लिखे हुऐ को 
शिव उधर
पंक्तियों के बीच में 
नहीं लिखे हुऐ को 
गढ़ रहा होता है ।

आज्ञा दें दिग्वियज को
मैं आता रहूँगा
नए चर्चाकार मिलते तक








बुधवार, 27 जुलाई 2016

376...बारिशों का पानी भी कोई पानी है नालियों में बह कर खो जाता है


सादर अभिवादन
लीजिए आज आनन्द
सावन के महीने का

धर्म और अध्यात्म का महीना
हर्ष और उल्हास का महीना
मिलन व बिछोह का महीना

पता नहीं क्या-क्या नही किया
इस निगोड़े सावन के महीने नें

‘एक एवं तदा रुद्रो न द्वितीयोऽस्नि कश्चन’ सृष्टि के आरम्भ में एक ही रुद्र देव विद्यमान रहते हैं, दूसरा कोई नहीं होता। वे ही इस जगत की सृष्टि करते हैं, इसकी रक्षा करते हैं और अंत में इसका संहार करते हैं। ‘रु’ का अर्थ है-दुःख तथा ‘द्र’ का अर्थ है-द्रवित करना या हटाना अर्थात् दुःख को हरने (हटाने) वाला। शिव की सत्ता सर्वव्यापी है। 


टूटेंगे मगर फिर भी वो पछताएँगे नहीं
कह के जो कभी बात को जुठलाएँगे नहीं

रिश्तों का यही सच है इसे गाँठ बाँध लो
जो प्रेम से सींचोगे तो मुरझाएँगे नहीं

दिन सावन के.........विनोद रायसरा
दिन सावन के
तरसावन के
कौंधे बिजली
यादें उजली
अंगड़ाई ले
सांझें मचली

आते सपने
मन भावन के...


मच्छर ने नोच   खाया  सावन  का  महीना ।
मैं रात भर  खुजाया  सावन   का  महीना ।।

जब गर्म हुआ तड़का कीड़ों ने जम्प मारा ।
मेथी समझ के खाया सावन  का महीना ।।

चाहे छूट गए हो रिश्ते, चाहे रूठ गए हो प्यारे
मत बनना इनकी खातिर कैसे भी हत्यारे
खूब संजोये होंगे सपने, खूब मिले होंगे जिज्ञासु
मंजिल पाने की कोशिश में खूब बहाये होंगे आंसू

लो, सावन बहका है 
बूँदों पर है खुमार, मनुवा भी बहका है। 


एक पागलपन भी
पोकेमॉन गो और अरहर की दाल....अंशुमाली रस्तोगी
वाकई इंसान की 'दीवानगी' का कोई ठौर नहीं। कब, कहां, किस पर 'मेहरबान' हो जाए। एक तरफ लोगों में पोकेमॉन गो को लेकर क्रेज है तो दूसरी तरफ रजनीकांत की तस्वीरों को दूध से नहलाया जा रहा है।
फिलहाल, मैं पोकेमॉन गो के बदले मुफ्त अरहर की दाल पाने के इंतजार में हूं। देखना है, कब तक नसीब होती है।



आज का शीर्षक..
बरसात के मौसम में 
यूँ ही खुला छोड़ कर 
चले जाने के बाद 
जब कोई लौट कर 
वापस आता है 
कई दिनों के बाद 
गली में पाँवों के 
निशान तक 
बरसते पानी के साथ 
बह चुके होते हैं 

सावन का महीना
और कोढ़ में खाज
अंक भी है
तीन सौ छिहत्तरवाँ
लिंक पर लिंक लगाए जा रही हूँ
कहती हूँ अपने आप से
अब बस भी कर यशोदा




मंगलवार, 26 जुलाई 2016

375...महफ़ूज़ रहे मुल्क हिफ़ाज़त की बात कर


जय मां हाटेशवरी...

कौन गिरतों को यहां उठाता है।
ठोकरें यार बस लगाता है।
प्यार करता नही है वो हमसे।
अपने पैरों तले दबाता है।
रचनाकार
प्रदीप कश्यप

अब पेश हैं...आज की चयनित कड़ियां...

महफ़ूज़ रहे मुल्क हिफ़ाज़त की बात कर
जिन्दा   रहे   न   कोई   दरिन्दा   जहान   में ।
आते  चुनाव  में  तू  हजामत  की  बात कर ।।
नागन है इक  तरफ  तो नाग  कुर्सियो  पे है ।
लेकर खुदा का नाम रियासत की बात  कर ।।
वर्षों  से  लुट  रहा  है  यहां  आम  आदमी ।
अपनी दुआ में साफ़ हुकूमत की  बात  कर ।।

मुझे छोड़ न जाना |
मैं भी हूँ उत्सुक
जाना चाहती हूँ वहां
बहुतों को पहचानती हूँ
मैंने ठान लिया है
वहीं बनाऊँगी
अपना आशियाना
 अपनों से बिछोहअब
 सह न पाऊंगी |

नारी देवी तो देवी का अपमान क्यो
gyandrashta
स्वाति सिंह ने जो किया वो बिल्कुल सही किया है , एक माँ और एक बहु का फर्ज निभाया है । मायावती जी कुछ स्वाति सिंह जी से भी सीखिए विरोध कैसे किया जाता है
बहनजी आप तो नारी थी और आप तो खुद को देवी मानती है फिर यह सब क्या है ।

 भूतों का उपहार ( बाल कहानी )
" नहीं बेटा ! गरीब धन से नहीं , मन से होते हैं !  मेहनत की कमाई से जो सुकून मिलता है वही सच्चा ऐश है। जो तुम जादुई सामान लाये हो उनसे हम दावत नहीं करेंगे बल्कि उनको हम वापस देकर आएंगे। "
" क्यों माँ ! यह तो मुझे भूतों ने उपहार में दिए हैं। "
" ऐसे उपहार किस काम के जो हमें नाकारा बना दे। और सोचो अगर गाँव में किसी को पता चलेगा तो विश्वास कौन करेगा ? लोग तो यही कहेंगे ना कि जरूर ही ये कोई चोरी-डकैती करते होंगे ? "
" हां माँ ! ये तो मैंने सोचा ही नहीं था ! "
" हम लोग थैले से उतना ही रूपया लेंगे, जितने में हमारे घर की छत की मरम्मत हो जाये और खेत के लिए बीज खरीद सकें। "
     माँ की बात सही भी थी। गोपाल मान गया। उन्होंने थैले से जरूरत भर के  कुछ रूपये लिए और सारा सामान भूतों को लौटाने चल दिए। भूत भी माँ की बात और सोच से बहुत प्रसन्न थे। माँ ने उन भूतों को यह वचन भी दिया कि जो रूपये उन्होंने थैले से लिए हैं वे एक तरह से क़र्ज़ है और यह क़र्ज़ वह किसी जरूरतमंद की सहायता करके चुका दिया करेगी ताकि किसी और माँ  बच्चे से बिछुड़ना ना पड़े। गोपाल और उसकी माँ ख़ुशी-ख़ुशी घर की और चल दिए।

 "आतंक का कोई मज़हब नहीं होता"... ??
कम से कम इतना तो मानना ही पड़ेगा कि हर "नई शुरुआत" अमेरिका से होती है...
चाहे ओसामा की लाश को समुद्र में फेंकना हो, या ग्वांतानामो की जेल में आतंकियों को दी जाने वाली अभिनव यातनाएँ हों...|स्वाभाविक है कुछ नया सोचने और करने के लिए हिम्मत की जरूरत होती है. हम जैसे बेशर्म लोग तो अभी भी ससम्मान भारी भीड़ के साथ याकूब और बुरहान के जनाजे निकलते हुए देखते रहते हैं...
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कौन है युवा
युवा उसे नहीं कहते जो किसी प्रचारित विचारधारा के पीछे भागने पर विवश रहे !
युवा उसे कहते हैं जिसके पास अपने विचार हों समाज के प्रति !
युवा उसे कहते हैं जो क्रांतिकारी विचारधारा रखता हो अपने देश के प्रति !

गांधी हत्या और आरएसएस
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यह भी स्पष्ट हो गया है कि मात्र 10 लोगों द्वारा रचा गया यह षड्यंत्र था और उन्होंने ही इसे पूरा किया। इनमें से दो को छोड़ सब पकड़े जा चुके हैं। इस पत्र व्यवहार से भी स्पष्ट है कि कांग्रेस का एक धड़ा लगातार पंडित नेहरू को संघ के विरोध में गलत सूचनाएं उपलब्ध करा रहा था। लेकिन, वास्तविकता धीरे-धीरे स्पष्ट
होती जा रही थी।
          महात्मा गांधी की हत्या से संबंधित संवेदनशील मामले को सुनवाई के लिए न्यायमूर्ति आत्मा चरण की विशेष अदालत को सौंपा गया। प्रकरण की सुनवाई के लिए 4 मई, 1948 को विशेष न्यायालय का गठन हुआ। 27 मई से मामले की सुनवाई शुरू हुई। सुनवाई लालकिले के सभागृह में शुरू हुई। यह खुली अदालत थी। सभागृह खचाखच भरा रहता था। 24 जून से 6 नवंबर तक गवाहियां चलीं। 01 से 30 दिसंबर तक बहस हुई और 10 जनवरी 49 को फैसला सुना दिया गया। सुनवाई के दौरान न्यायालय ने 149 गवाहों के बयान
326 पृष्ठों में दर्ज हुए। आठों अभियुक्तों ने लम्बे-लम्बे बयान दिए, जो 323 पृष्ठों में दर्ज हुए। 632 दस्तावेजी सबूत और 72 वस्तुगत साक्ष्य पेश किए गए। इन सबकी जांच की गयी। न्यायाधीश महोदय ने अपना निर्णय 110 पृष्ठों में लिखा। नाथूराम गोडसे और नारायण आप्टे को मृत्युदंड की सजा सुनाई गई। शेष पाँच को आजन्म कारावास की सजा हुई। इस मामले में कांग्रेस और वामपंथियों ने अपने राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी विनायक दामोदर सावरकर को भी फंसाने का प्रयास किया था। लेकिन, उनका यह षड्यंत्र भी असफल रहा। न्यायालय से सावरकर को निर्दोष बरी किया गया। इसी फैसले में न्यायालय ने स्पष्ट तौर पर यह कहा कि महात्मा गांधी की हत्या से संघ का कोई लेना-देना नहीं है। स्पष्ट है कि उच्चतम न्यायालय के निर्णय के बाद बात यहीं खत्म हो जानी चाहिए थी। लेकिन, नहीं। न्यायालय के निर्णय से कांग्रेस और वामपंथी नेता संतुष्ट
नहीं हुए। संघ विरोधी लगातार न्यायालय के प्रति असम्मान प्रदर्शित करते हुए गांधी हत्या के लिए संघ को बदनाम करते रहे। बाद में, प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को दबाव या भरोसे में लेकर इस मामले को फिर से उखाड़ा गया। वर्ष 1965-66 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने गांधी हत्या का सच सामने लाने के लिए न्यायमूर्ति
जीवनलाल कपूर की अध्यक्षता में कपूर आयोग का गठन किया। दरअसल, इस आयोग के गठन का उद्देश्य गांधी हत्या का सच सामने लाना नहीं था, अपितु संघ विरोधी एक बार फिर आरएसएस को फंसाने का प्रयास कर रहे थे। लेकिन, इस बार भी उन्हें मुंह की खानी पड़ी। कपूर आयोग ने तकरीबन चार साल में 101 साक्ष्यों के बयान दर्ज किए तथा 407 दस्तावेजी सबूतों की छानबीन कर 1969 में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की। आयोग अपनी रिपोर्ट में असंदिग्ध घोषणा करता है कि महात्मा गांधी की जघन्य हत्या के लिए संघ
को किसी प्रकार जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता। (रिपोर्ट खंड 2 पृष्ठ 76)

आज बस यहीं तक...

धन्यवाद।









सोमवार, 25 जुलाई 2016

374....कपड़ा होना होता है हरी सोच के लोगों का हरा, सफेदों का सफेद और गेरुई सोच का गेरुआ होना होता है

सादर अभिवादन
बाल-बाल बचे
कुछ तो करना ही होगा
ताकि सुरक्षा बनी रहे...
कहते हैं न
जाको राखे सांईया
मार सके न कोय

चलिए और देखिए आजकी पढ़ी चुनी..

"यत्र नार्यस्य पूज्यंते रमन्ते तत्र देवता" 
अर्थात् जहाँ नारी पूजी जाती है वहाँ देवताओं का वास होता है। 
अब तो नारियों को गाली दी जाती है और इस कुकृत्य में सिर्फ पुरुष ही शामिल हैं ऐसा कहना गलत होगा। जब स्त्रियाँ किसी सम्माननीय और जिम्मेदार ओहदों पर पहुँच जाती हैं तब उनमें से भी कुछ स्वयं की अर्थात् स्त्री की मर्यादा भूल जाती हैं।


कर दी अंग्रेजी की हिन्दी...विष्णु बैरागी
यह उज्जैन से प्रकाशित एक सान्ध्यकालीन अखबार की कतरन है। उज्जैन की पहचान कवि कालीदास और राजा विक्रमादित्य से होती है। यह सोलह आना हिन्दी इलाका है जहाँ अंग्रेजी जानने/समझनेवालों का प्रतिशत दशमलव शून्य के बाद का कोई अंक ही होगा। किन्तु बोलचाल की भाषा के नाम पर अंग्रेजी बहुवचन का भी बहुवचन कर दिया गया है। यह हमारी मानसिक गुलामी की पराकाष्ठा है।



जितना है—वह काफी है.
मुट्ठी में जो है-वह हीरा है.
जो फेंक दिया गया-लौट कर नहीं आएगा.
अतः जीवन की झोली को बांधे रखिये-
वक्त के साथ-उसे खर्चिये भी.

शाख किसी दरख़्त की 
यदि झुक जाए थोड़ी भी 
दम भर सुस्ता लूँ 

क्या लिखूँ क्या छोड़ूँ.....अर्चना चावजी
मिलने आए हमसे "यम"
मिलकर हममे गये हैं रम
चाहे जितने दे ले गम
बड़े प्यार से झेलें हम



चाँद उतरा अब हमारे अंगना 
रोशनी को झिलमिलाना आ गया 

रूठ कर साजन न तुम जाना कहीं 
प्यार में हम को मनाना आ गया 


लक्ष्मी सहगल
लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक  
चन्द्रशेखर आजाद
हम सब की ओर से इन तीनों महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों को शत शत नमन ! 

और अंत में आज के शीर्षक की बारी..
'उलूक' 
तेरे जैसे 
बेवकूफों 
के पुतले 
फुँकवाने 
के लिये 
"होशियार" 
के पास 
समय ही 
नहीं होता है ।

आज्ञा दें दिग्विजय को
फिर मुलाकात होगी
कभी भी-कहीं भी







रविवार, 24 जुलाई 2016

373......बेटी लाडली होती है सभी की

सुप्रभात दोस्तो 
सादर प्रणाम
चारो तरफ गंदी राजनीति का
खेल खेला जा रहा है 
और
उसमे बेटी को 
घसीटा जा रहा है जो साबित करता है 
कि 
हमारे कुछ नेता किस हद तक जा सकते है।
इसलिए आज शुरुआत बेटी पर कविता से 
करते है।.........


बेटियां आँगन की महक होती हैं
बेटियां चौंतरे की चहक होती हैं

बेटियां सलीका होती हैं
बेटियां शऊर होती हैं
बेटियों की नज़र उतारनी चाहिए
क्योंकि बेटियां नज़र का नूर होती हैं

इसीलिए
बेटी जब दूर होती हैं बाप से
तो मन भर जाता संताप से

डोली जब उठती है बेटी की
तो पत्थरदिलों के दिल भी टूट जाते हैं
जो कभी नहीं रोता
उसके भी आँसू छूट जाते हैं

              आँखें
वे नहीं चाहते 
कि औरतों के आँखें हों.

आँखें होंगी,
तो वे देख सकेंगी,
जान सकेंगी
कि क्या-क्या हो रहा है 
उनके ख़िलाफ़,
उन्हीं के सामने.


                 संवेदना
आज एक बेबी शो में रु-ब-रु मिलने का मौका मिला था| गर्मजोशी से एक दूसरे से गले मिलकर दोनों बहुत खुश थीं|’बेबी शो’ की प्रतिस्पर्धा में किरण का आठ महीने का गुलथुल बेटा भी शामिल था| हर तरह के परीक्षणों के बाद परिणाम की बारी थी| जीत वाली लिस्ट में किरण के बेबी का नाम नहीं था मगर इससे बेखबर वह अपने बच्चे को प्यार किए जा रही थी|
‘ तुम्हारा बेटा नहीं जीत सका फिर भी तुम उससे प्यार क्यों किए जा रही हो”, सुमन ने तीखी बात कही|
“जीत से क्या मतलब, यह मेरा बच्चा है तो प्यार क्यों न करूँ,” किरण ने तल्खी से कहा|



सहज खड़े पत्थर पहाड़ सब
जंगल अपनी धुन में गाते,
पावन मौन यहाँ छाया है
झरने यूँ ही बहते गाते !

वृक्ष न कहते फिरते खग से
बन जाओ तुम साधन मेरे,  
मानव ही केवल चेतन को
जड़ की तरह देखता जग में !



ज़िन्दगी की ज्यामिति 
इतनी भी मुश्किल 
नहीं कि जिसे
ढूंढे हम, 
हाथ 
की लकीरों में। तुम्हारे 
शहर में यूँ तो हर 
चीज़ है ग़ैर 
मामूली, 
मगर 
अपना दिल लगता है 
सिर्फ फ़क़ीरों में।



चाँदनी रात में आसमान में खिले चाँद को देखकर फुटपाथ पर फटी चादर पर लेटे हुए जिले ने नफे से कहा ,"भाई नफे देख दुनिया चाँद तक पहुँच गयी और एक हम हैं जो इस फुटपाथ से ऊपर न उठ सके।"

जिले के बगल में मैली-कुचैली चादर पर करवट बदलकर सोने की कोशिश करते हुए नफे ने जब यह बात सुनी तो मंद-मंद मुस्कुराने लगा।

अब दीजिए आज्ञा
सादर 

शनिवार, 23 जुलाई 2016

372 .... बुजुर्गों का ख्याल रखना




यथायोग्य
प्रणामाशीष

फिर हाजिर हूँ
ब्लॉग के दूसरे साल में पहले पोस्ट के साथ



बार-बार टूटकर जुड़ना अब नहीं होता,
तेरे शहर में मेरा अकसर अब ठहरना नहीं होता,
फिर कब होगी दीदार तेरे चाँद से चहेरे की,
इक यही बात पर अब ऱोज-ऱोज मिलना नहीं होता





मुझे भी आने लगी है
अपने पसीने की सुगंध
चाहे मैं पढ़ी लिखी हूँ या अनपढ़
शान से अपना गुजरा कर लुंगी
नहीं फैलाउंगी 
अपना हाथ किसी के आगे





आपसी रंजिश, वाद- विवाद, सहमति- असहमति जैसे तमाम पहलू हैं 
जो इस संवेदनहीन समाज में हत्या के लिए काफी हैं 
लेकिन जब मौत सिर्फ इसलिए कर दी जाए कि लड़की ने परंपरा को नकारते हुए 
अपना अंग प्रदर्शन किया है तो समझ लीजिए, 
हर दिन आपका समाज और आप गर्त में जा रहे हैं।




अलीगढ़ आंदोलन किसने चलाया— सर सैय्यद अहमद खाँ
● अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय की नींव किसने डाली— सर सैय्यद अहमद खाँ
● ‘युवा बंगाल’ आंदोलन के नेता कौन थे— हेनरी विवियन डेरोजियो
● ‘सत्य शोधक समाज’ की स्थापना किसने थी— ज्योतिबा फूले
● किस धर्म सुधारक की मृत्यु भारत से बाहर हुई— राजा राममोहन राय
● वहाबी आंदोलन का मुख्य केंद्र कहाँ था— पटना






अहंकार,क्रोध,द्वेष,ईर्ष्या,लोभ और मोह हमें शक्तिहीन बनाते हैं। 
खासकर क्रोध से शक्ति बहुत जल्दी क्षीण हो जाती है। 
शक्ति मुद्रा ऐसी स्थिति में बहुत कारगर है। 
जो अत्यधिक शारीरिक श्रम के कारण थक जाते हैं,
उन्हें भी इस मुद्रा से काफी लाभ होगा।





तो कुछ तो ऐसा होना चाहिए जिससे समाज को अपनी उम्र दे चुके, 
हमारी आबादी के करीब  8-9 प्रतिशत के इस वर्ग को जीवन के 
इस पड़ाव पर असुरक्षा महसूस न हो। चौबीसों घंटे उन्हें यह डर ना बना रहे
 कि हमारे साथ कुछ अघटित हो जाता है तो हम क्या करेंगे ! 
आज कुत्ते-बिल्लियों तक के लिए कानून बने हुए हैं 
पर मानव ही सबसे ज्यादा उपेक्षित है।





हर किसी का धर्म है उसके लिए खास,
हर धर्म का अलग पर्व है।
धार्मिक है वह जो अपने धर्म को,
देते हैं प्राथमिक दर्जा।
वह नहीं है धार्मिक जो दूसरे धर्मों को,
दिखाता है गलत रास्ता।


फिर मिलेंगे ..... तब तक के लिए

आखरी सलाम


विभा रानी श्रीवास्तव





शुक्रवार, 22 जुलाई 2016

371...रास्ते मुश्किल सही मंजिलें खुशगवार रहें...


जय मां हाटेशवरी...

आज मन बहुत आनंदित है...
इतना आनंदित शायद पहली बार...
शायद आनंद अपने बस में नहीं है...


 जल्द ही बनने जा रहा है दुनिया का सबसे बड़ा हिंदू मंदिर. लेकिन आपको बता दें कि यह मंदिर भारत में नहीं बल्कि सात समंदर पार यहां से करीब दस हजार किलोमीटर दूर  America में बन रहा है. लगभग एक हजार करोड़ रुपये की लागत से न्यू जर्सी के राबिंसविल में बन रहा अक्षरधाम मंदिर, क्षेत्रफल के हिसाब से (162 एकड़) विश्व का सबसे बड़ा हिंदू मंदिर है. अभी तक का सबसे बड़ा हिन्दू मंदिर तमिलनाडु के श्रीरंगम में 156 एकड़ में बना श्री रंगनाथ स्वामी मंदिर है. यूं तो America में अक्षरधाम मंदिर कई शहरों में बने हैं जैसे एटलांटा, शिकागो, ह्यूस्टन, लॉस एंजिलिस सहित टोरंटो-कनाडा में भी यह मंदिर हैं लेकिन इसकी मूल
संस्था बोकसंवासी श्रीअक्षर पुरूषोत्तम स्वामी नारायण द्वारा गांधी नगर गुजरात और दिल्ली के यमुना तट पर बने मंदिर विशाल हैं. गुजरात गांधी नगर का अक्षरधाम मंदिर 23 एकड़ जबकि दिल्ली का 60 एकड़ जमीन में बना है. लेकिन बन रहा राबिंसविल का अक्षरधाम मंदिर न केवल इनसे बड़ा बल्कि विश्व का सबसे बड़ा मंदिर है.

विश्व के सबसे बड़े अक्षरधाम मंदिर का निर्माण कार्य साल 2010 में शुरू हुआ था और अगस्त 2017 में इसका विधिवत उद्घाटन होगा. 1830 में दिवंगत हुए संस्था के स्वामी नारायण भगवान को समर्पित इस मंदिर का निर्माण 95 वर्षीय प्रमुख स्वामी महाराज की देखरेख में चल रहा है. चार मंजिले इस मंदिर में भारतीय की संस्कृति एंव इतिहास संबंधी म्यूजियम तथा युवा केंद्र का निर्माण भी किया जाएगा. संयुक्त रूप से यह मंदिर भारत के उत्तर में बने मंदिरों तथा दक्षिण भारतीय वास्तुकला पर आधारित है.

इसके पिलर्स पर महाभारत, रामायण तथा प्राचीन भारतीय संस्कृति संबंधी चित्र बनाए गए हैं. इस मंदिर के लिए दीवारों और पिलर में लगने वाली मूर्तियां राजस्थान के डुंगरपुर के संगवाड़ा व पिंडवाड़ा में 2000 कारीगरों द्वारा बनाई जा रही हैं. गौर हो इस भव्य मंदिर में सभी हिंदू देवी – देवताओं की मूर्तियां स्थापित की गई हैं. संस्था के धार्मिक विद्वानों की आदमकद मूर्तियां भी लगाई गई हैं. मंदिर के जरिये भारतीय संस्कृति मुख्यत: प्रेमभाव, प्रार्थना, अहिंसा तथा नि:स्वार्थ सेवा का संदेश दिया जाएगा. बर्चवुड में रहने वाले उत्तराखंड एसोसिएशन ऑफ नॉर्थ America के सचिव अमित पांडे कहते हैं कि न्यू जर्सी में भारी तादाद में भारतीय रहते हैं और यहां बहुत से मंदिर हैं लेकिन विश्व का सबसे बड़ा मंदिर यहां बनने से हम सब उत्साहित हैं.
अब चलते हैं आज की चयनित कड़ियों की ओर...

आखिर ये प्रश्न उठा ही क्यूँ ?
पर मैं ऑस्ट्रेलियन लोगों को विश्वास देती हूँ कि हम जो भी कर रहे है वो सिर्फ़ ऑस्ट्रेलिया के लोगों के हित में कर रहे हैं । हम यहाँ इंग्लिश बोलते है ना कि अरब ..
इसलिए अगर इस देश में रहना होगा तो आपको इंग्लिश सीखनी ही होगी ।
ऑस्ट्रेलिया में हम JESUS को भगवान मानते हैं, हम सिर्फ़ हमारे CHRISTIAN-RELIGION को मानते है और किसी धर्म को नहीं, इसका यह मतलब नहीं कि हम सांप्रदायिक है
अगर आपको हमारे ध्वज से, राष्ट्रीय गीत से, हमारे धर्म से या फिर हमारे रहन-सहन से कोई भी शिकायत है, तो आप अभी इसी वक़्त ऑस्ट्रेलिया छोड़ दें " । जूलिया गिलार्ड -

गज़ल (तुमने उस तरीके से संभारा भी नहीं होगा)
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तुमसे दूर रह करके तुम्हारी याद आती है
मेरे पास तुम होगें तो यादों का फिर क्या होगा
तुम्हारी मोहनी सूरत तो हर पल आँख में रहती
दिल में जो बसी सूरत उस सूरत का फिर क्या होगा

फिर तुम्हारा साथ मिले न मिले - अनुषा मिश्रा
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आज जब मिले हो तुम मुझे
इतने सालों बाद तो
जी करता है कि आने वाले
हर पल को बिताऊं तुम्हारे साथ
तुम्हारेचेहरे को बसा लूं अपनी आंखों में

हूं मैं एक फूल सी..........तरसेम कौर
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जैसा सांचा मिलता है
उसी में ढल जाती हूं
कभी मोम बनकर
मैं पिघलती हूं
तो कभी दिए की जोत
बनकर जलती हूं

कुछ नहीं तो दिल में बेकरारी पालो
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छुप कर ज़िन्दगी भी क्या जीना
जो हो सरे आम दोस्ती यारी पालो
सारे ख़ज़ाने यहीं मिट्टी में मिल जायेंगे
अपने लिए कुछ नहीं तो खुद्दारी पालो

रास्ते मुश्किल सही मंजिलें खुशगवार रहें...
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इबादत में है भला। लाओ अपने सारे चढ़ावे, सारी मन्नतें, व्रत, उपवास सब इन स्कूलों को मजबूत बनाने में लगाओ। बच्चों को प्यार करना, समझना, उनके साथ प्यार और
सम्मान से पेश आना सीखो। इस देश का भविष्य कैसे न जगमगायेगा फिर। वापसी में मौसम बहुत नर्म हो चला था...
ये पा उधर बढ़ें न जिधर तेरा घर नहीं
इस शह्र के हैं लोग अजब ही ख़याले ख़ाम
दुश्मन भी गर मिले तो मिले मातिबर नहीं
भड़केगी आग और हो जाएगा ख़ाक तू
आतिशजनी से होगा अलग अब भी गर नहीं


आज बस इतना ही...
हम तो मिलते ही रहेंगे...
कभी यहां
कभी वहां
धन्यवाद।
















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