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गुरुवार, 2 जून 2016

321.... ये तो बस एक साल गुज़रा है सारे जनम तो बाकी हैं अभी :)

सुप्रभात मैं संजय भास्कर एक बार फिर से हाजिर हूँ
 कुछ चुने हुए लिनक्स के साथ....!


एक साल !!! क्या बस सिर्फ एक साल ... ऐसा लगता है
 जैसे मैं तुम्हे बरसों से जानता हूँ ,सदियों से ,जन्मों से
तुम्हारी ये अटखेलियाँ करती हंसी ,
जैसे हो कोई ,
चांदनी सलोनी सी
उतर आती है आँगन में
और रोशन कर देती है
खामोश दिल की सुगबुगाहट...........शेखर सुमन 



दर्द रिस्ता है मोम की चट्टानों से
सुन कर लोग फ़ेर लेते हैं चेहरे
इन अफ़सानों से
जो निरंतर चले जा रहे हैं
किस्मत की अंधेरी बंद गलियों  में
मेरी स्याही के रंग...............मधुलिका पटेल 



हर्फ़ हर्फ़ गुजरो मेरी कविता से
और हर शब्द सोना हो जाए
बस लिख दूँ रौशनी
और रौशन हर इक कोना हो जाए
मन का पंछी ...........शिवनाथ कुमार 



तुम्हें बहुत शिकायतें है न...?
कि मैं प्यार नहीं करता
तुमसे
कि मैं ध्यान नहीं रखता
तुम्हारा
कि मैं वक़्त नहीं निकालता
तुम्हारे लिए
दिल से .......... स्नेहा राहुल चौधरी 



क़समें खाकर
खून के ख़त लिखकर
किए गए हों जो वादे
सिर्फ़ वही वादे नहीं होते
ख़ामोशी के साथ
आँखों ही आँखों में
होते हैं बहुत से वादे
साहित्य सुरभि .......दिलबागसिंह विर्क 



हे सर्वशक्तिमान शक्ति !
आज मांगती हूँ
तुमसे तुम्हारा एक
बहुत ही नन्हा सा लम्हा
अपने ही लिये .
झरोख़ा.............निवेदिता श्रीवास्तव



जिंदगी तो एक मुसीबत है
मुसीबत के सिवा कुछ भी नहीं  !!

पत्थरो तुम्हे क्यूँ पूजूं
तुमसे भी तो मिला कुछ भी नहीं !!
शब्दों की मुस्कराहट .........संजय भास्कर

और अंत में मेरी एक पुरानी रचना इसी के साथ ही आप सब मुझे इजाजत दीजिए अलविदा शुभकामनाएं फिर मिलेंगे अगले हफ्ते इसी दिन सादर अभिवादन स्वीकार करें

-- संजय भास्कर


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