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सोमवार, 30 मई 2016

318..अब आत्माऐं होती ही नंगी हैं बस कुछ ढकने की कुछ सोची जाये

सादर अभिवादन
भाई विरम सिंह जी आ गए
संजय भाई की वापसी भी
हो ही गई...
कुछ तो विविधता मिलेगी
आप सभी को..

दो दिन से मैं पढ़ ही रही हूँ
प्रस्तुत है कुछ नयी कुछ जूनी रचनाओं की कड़िया.....


मनोज नौटियाल.....
भाव की  भागीरथी के , मैं किनारे देखता हूँ
आज तर्पण पा गए हैं ,  वेदना के छंद सारे
बाँध रखी थी गिरह जो , वीतरागी चेतना ने
मुक्त होने लग गए हैं , प्रेम के अनुबंध सारे ।।


संगीता जांगीड़.....
तुम चाहते क्या हो ?
मैं हमेशा खुश रहूँ ?
या खुश दिखूँ
तुम ही बताओ
जब अंदर पतझर हैं
तो बाहर
बसंत कैसे बिखेरू मैं ?

उस दि‍न 
पेड़ से झड़ी सुनहरी पत्‍ति‍यों ने 
सजाया था अनोखा बि‍स्‍तर 
चांद पलकें झपकाकर देख रहा था 
हमारा प्रथम चुंबन 
जो आधा मेरे होठों पर रखकर 
आधा अपने साथ लेकर चला गया था वो
फि‍र एक रोज पूरा करने का वादा देकर 

अगर सोच में तेरी पाकीज़गी है
इबादत सी तेरी  मुहब्बत लगी है

मेरी बुतपरस्ती का जो नाम दे दो
मैं क़ाफ़िर नहीं ,वो मेरी बन्दगी है


ख़ार तो खुद ही मिले, गुल बुलाने से मिले 
आपके शहर के धोखे भी सुहाने से मिले 

मुस्कराहट को लिए ग़म खड़े थे राहों में 
अज़ब फ़रेब तेरा नाम बताने से मिले


अजीबोगरीब सच...

सारे संसार में ऐसी हजारों जगहें और इमारतें हैं जिन्हें पारलौकिक शक्तियों के वशीभूत माना जाता है।
इसमें कितनी सच्चाई है और कितनी अफवाह यह कभी भी परमाणित नहीं हो पाता क्योंकि
दोनों पक्षों के पास अपनी बात सिद्ध करने के दसियों प्रमाण होते हैं।
हमारे देश में भी ऐसी सैंकड़ों विवादित जगहें हैं जिन्हें अंजानी शक्ति के द्वारा बाधित माना जाता है।
ऐसी ही एक इमारत राजस्थान के कोटा शहर में भी है जिसे बृजराज महल के रूप में जाना जाता है। 


आज की शीर्षक कड़ी
डॉ. सुशील कुमार जोशी...
कई दिन के
सन्नाटे में
रहने के बाद
डाली पर उलटे
लटके बेताल
की बैचेनी बढ़ी
पेड़ से उतर कर
जमीन पर आ बैठा
हाथ की अंगुलियों
के बढ़े हुऐ नाखूनों से
जमीन की मिट्टी को
कुरेदते हुऐ
लग गया करने
कुछ ऐसा जो
कभी नहीं किया

आज्ञा दें यशोदा को..
एक गीत सुनिएगा
बीस साल बाद







6 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति पर 'उलूक' कबाड़ी के पुराने कबाड़ में से फिर से कुछ उठा कर के आई आप :) ।

    आभार दूसरी बार फिर से ।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. पुराने लिखे पढ़ने में अच्छे लगते हैं
      काका जी, बच्चन जी और दुष्यन्त कुमार जी
      का लिक्खा आज भी प्रासंगिक है
      सादर

      हटाएं
  2. बढ़िया बुलेटिन प्रस्तुति हेतु आभार!

    जवाब देंहटाएं
  3. सुंदर चर्चा...
    आभार आप का....

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत बढ़िया.... यशोदाजी, आभार मुझे यहाँ स्थान देने के लिये 🙏🏼

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. संगीता बहन
      स्वागत है आपका
      आइएगा और आते रहिएगा
      नए लोग नई रचनाएँ
      और नई प्रेरणा भी मिलेगी यहाँ
      सादर
      यशोदा

      हटाएं

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