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शनिवार, 28 मई 2016

316 .... जिन्दगी




सभी को यथायोग्य
प्रणामाशीष


जिंदगी की राह में ठोकरें काफी मिलती है
लेकिन
अपने पैरों पर उठ खड़े होने का फैसला
 केवल हमारे हाथों में ही है
जगत खातिर ही जुगत में जुटिये
केवल अपने लिए तो पशु  जुटाते





हर उजाले की तह में एक अँधेरा छुपा होता है जिसे हम नहीं पहचान पाते,
 जिस तरह चौंधिया देने वाली रौशनी में फिर कुछ नहीं दिखता, 
असल में हम खुद के आलोक में खुद को नहीं पहचान सकते, 
हम सबसे ज़्यादा जिससे गैरवाकिफ होते हैं वे हम खुद हैं..
 असल में हम अपने खुद की शान्ति में सबसे बड़ा अवरोध साबित होते हैं



स्मृतियाँ जब मस्तक पटल पर दस्तक देती हैं तो ऐसे में कैसे विस्मृत कर पाऊँगा 
मई की पन्द्रवी उस शाम को जब सूरज की लालिमा हिमखंडों से टकराकर
 उसके चेहरे पर पड़ रही थी और लालिमा से तमतमाया उसका चेहरा 
सखी-सहेलियों के गुरमुट में यूं प्रतीत हो रहा था 
मानो आज धरती पर ही चाँद मेरे इन्तजार में खड़ा हो।




दूसरों को सुखी करना ,पुण्य का काम होता है
मैं अन्य लोगों को पुण्य कमाने का मौका देना चाहता था
सो मैं सतर्क था | 
जिनका छठे छमासे ही कभी फोन आता था
वे भी इस सुख की लालसा में 




हर साल 20 मई को हमें स्कूल से रिजल्ट मिलता था. 
उसी शाम बाबू मुझे चारबाग स्टेशन की छोटी लाइन ले जाते, 
जहां नैनीताल एक्सप्रेस खड़ी रहती. 
ट्रेन में दो-चार परिचित मिल ही जाते. किसी एक को मेरा हाथ थमा कर 
बाबू उससे कहते- ‘बच्चे को हल्द्वानी से बागेश्वर की बस में बैठा देना तो!
’ मैं मजे से उनके साथ यात्रा करता.




ऊर्जा बन कर बहती है
इस मिट्टी में बसती है                  
बीज से खिलती है
नए पौधों में मिलती है
जवानी कहीं जाती नहीं.




हिन्दी भारत की एकता, 
महिमा और गरिमा है, 
हिन्दी सभी भारतीय भाषाओं की अग्रजा है।
हिन्दी को दैनिक जीवन में लाना और रखना हमारा धर्म है।
हिन्दी का हृदय पवित्र और विशाल है, 
हिन्दी उर्दू को अपनी छोटी बहन मानती है





चलो सखी हम दूर जहाँ से, इक दर्या के शांत किनारे
सूरज की लाली में लिपटे गगन-तले इक सांझ गुजारे

लहरों का हो शोर सुरीला, और पवन की चंचल हलचल
नर्म रेत की चादर ओढे इत्मिनान से बैठे कुछ पल

घुले साँस में साँस, पहन ले हाथों में हाथों के कंगन




फिर मिलेंगे ..... तब तक के लिए 

आखरी सलाम


विभा रानी श्रीवास्तव


5 टिप्‍पणियां:

  1. सादर प्रणाम दीदी
    शानदार रचनाएँ चुनी आपने
    दाद देती हूँ..
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  2. बढ़िया हलचल प्रस्तुति हेतु धन्यवाद!

    जवाब देंहटाएं
  3. मेरी रचना को स्थान देने के लिए आपका बहुत बहुत आभार और सभी चर्चाकार महानुभावों को नमन,,,

    जवाब देंहटाएं

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