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मंगलवार, 17 मई 2016

305....दहेज़ की लोभी इस संसार में, दहेज़ की भेंट छड़ी हूँ मैं। !

जय मां हाटेशवरी...


एक कवि नदी के किनारे खड़ा था !
तभी वहाँ से एक लड़की का शव नदी में तैरता हुआ जा रहा था।
तो तभी कवि ने उस शव से पूछा --

"कौन हो तुम ओ सुकुमारी,बह रही नदियां के जल में ?
कोई तो होगा तेरा अपना,मानव निर्मित इस भू-तल मे !
किस घर की तुम बेटी हो,किस क्यारी की कली हो तुम
किसने तुमको छला है बोलो, क्यों दुनिया छोड़ चली हो तुम ?
किसके नाम की मेंहदी बोलो, हांथो पर रची है तेरे ?
बोलो किसके नाम की बिंदिया, मांथे पर लगी है तेरे ?
लगती हो तुम राजकुमारी, या देव लोक से आई हो ?
उपमा रहित ये रूप तुम्हारा, ये रूप कहाँ से लायी हो?"
""दूसरा दृश्य--""
कवि की बाते सुनकर,, लड़की की आत्मा बोलती है..

"कवी राज मुझ को क्षमा करो, गरीब पिता की बेटी हुँ !
इसलिये मृत मीन की भांती, जल धारा पर लेटी हुँ !
रूप रंग और सुन्दरता ही, मेरी पहचान बताते है !
कंगन, चूड़ी, बिंदी, मेंहदी, सुहागन मुझे बनाते है !
पति  के सुख को सुख समझा, पति  के दुख में दुखी थी मैं !
जीवन के इस तन्हा पथ पर, पति के संग चली थी मैं !
पति को मेने दीपक समझा, उसकी लौ में जली थी मैं !
माता-पिता का साथ छोड, उसके रंग में ढली थी मैं !
पर वो निकला सौदागर, लगा दिया मेरा भी मोल !
दौलत और दहेज़ की खातिर, पिला दिया जल में विष घोल !
दुनिया रुपी इस उपवन में, छोटी सी एक कली थी मैं !
जिस को माली समझा, उसी के द्वारा छली थी मैं !
इश्वर से अब न्याय मांगने, शव शैय्या पर पड़ी हूँ मैं !
दहेज़ की लोभी इस संसार में, दहेज़ की भेंट छड़ी हूँ मैं। !

अब पेश है कुछ चुनी हुई रचनाएं...
उज्जयिनी का सिंहस्थ कुम्भ महापर्व
s320/sihansth
s320/Mahakaal
s320/sihansth2016
s320/ujjain%2Bsihansth
s320/kumbh
त'
प्राप्त हुआ।
s320/ujjain%2Bbath
अमृत को लेकर देवता और दानवों में पुनः मतभेद हो गया और उनके बीच 12 दिनों तक युद्ध हुआ लेकिन जिस कुंभ में यह अमृत भरा पड़ा था, उसे कोई भी दल प्राप्त नहीं
कर सका। तब भगवान विष्णु ने मोहिनी का रूप धारण किया और वे नाचती-नाचती संघर्ष स्थल पर पहुंची और उन्होंने अपनी युक्ति से कुंभ में रखे अमृत का वितरण किया।
s320/kumbh
अमृत कुंभ को प्राप्त करने के लिए देवताओं व दानवों के 12 दिन के युद्ध के फलस्वरूप अब 'कुंभ' रखा गया। लेकिन शास्त्रों के अनुसार पृथ्वी पर केवल 4 स्थानों
पर कुंभ रखा गया- हरिद्वार, प्रयाग, उज्जैन और नासिक। यही कारण है कि सिर्फ इन चार स्थानों पर कुंभ मनाया जाता है। ऐसी मान्यता है कि मानव जितने समय को एक वर्ष
की अवधि मानता है, उतना ही समय देवताओं के लिए केवल एक दिन के बराबर होता है। इस अनुपात से युद्ध के 12 दिनों को मानव समाज 12 वर्ष गिनता है और

सच्चा प्यार
एक ही ज़मीन पर आ खड़े हुए हैं ये दोनों
किसी अद्रश्य हाथ ने लाखों करोड़ों की भीड़ से उठाकर
अगर इन्हें पास-पास रख दिया
तो यह महज़ एक अँधा इत्तिफाक था
लेकिन इन्हें भरोसा है कि इनके लिए यही नियत था
कोई पूछे कि किस पुन्य के फलस्वरूप?
नहीं, नहीं, न कोई पुन्य था, न कोई फल है

अबके बरस बरसात न बरसी ........
मेरी दुआ के साये तले बसेरा कर लो
लड़खड़ाते हैं ये कदम तुम्हारे तो क्या
मेरे मन के इस विश्वास का सहारा ले लो
साँसे मेरी अब थमने को हैं तो क्या
अपनी यादों में ही जिंदगी मुझे दे दो

आदमी इश्‍क में बदजुबां हो जाता है.....
भंवर आता है फि‍र कोई
झील में समुद्र जैसा
कहां होती है झील के पास
समुद्र सी वि‍शालता
कि‍ खुद में नदि‍यों को समो ले
उफना जाती है झील
पानी के तल में काई बैठ जातीी है
सब धुंधलाने लगता है

अमर शहीद सुखदेव जी की १०९ वीं जयंती
s320/Sukhdev
लाला लाजपत राय की मौत का बदला लेने के लिये जब योजना बनी तो साण्डर्स का वध करने में इन्होंने भगत सिंह तथा राजगुरु का पूरा साथ दिया था। यही नहीं, सन् १९२९
में जेल में कैदियों के साथ अमानवीय व्यवहार किये जाने के विरोध में राजनीतिक बन्दियों द्वारा की गयी व्यापक हड़ताल में बढ-चढकर भाग भी लिया था । गांधी-इर्विन
समझौते के सन्दर्भ में इन्होंने एक खुला खत गांधी जी के नाम अंग्रेजी में लिखा था जिसमें इन्होंने महात्मा जी से कुछ गम्भीर प्रश्न किये थे। उनका उत्तर यह मिला
कि निर्धारित तिथि और समय से पूर्व जेल मैनुअल के नियमों को दरकिनार रखते हुए २३ मार्च १९३१ को सायंकाल ७ बजे सुखदेव, राजगुरु और भगत सिंह तीनों को लाहौर सेण्ट्रल
जेल में फाँसी पर लटका कर मार डाला गया। इस प्रकार भगत सिंह तथा राजगुरु के साथ सुखदेव भी मात्र २३वर्ष की आयु में शहीद हो गये ।

मां की व्हील चेयर के पीछे क्या है...
फिक्र में बच्चों की यूं हर दम घुली जाती है मां
नौजवां होते हुए भी बूढ़ी नजर आती है मां....
जिंदगानी के सफर में गर्दिशों की धूप में
कोई साया नहीं मिलता तो याद आती है मां
सबको देती है सुकूं और खुद गमों की धूप में
रफ्ता रफ्ता बर्फ की सूरत पिघल जाती है मां
दर्द, आहें, सिसकियां, आंसू, जुदाई, इंतजार
जिंदगी में और क्या औलाद से पाती है मां
प्यार कहते हैं किसे और मामता क्या चीज है
कोई उन बच्चों से पूछे जिनकी मर जाती है मां.....

अब चलते-चलते पहड़ें...
Kitchen Tips-Bhag 7
आपकी सहेली
 पर
 ज्योति देहलीवाल 
धन्यवाद।

















8 टिप्‍पणियां:

  1. सुप्रभात
    उम्दा लिंक्स आज की

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत बढ़िया । दिल छूती कविता और मनभावन चित्रों के साथ आज की हलचल ।

    जवाब देंहटाएं
  3. कुलदिप जी, "पांच लिंकों का आनंद" में मेरी रचना शामिल करने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद।

    जवाब देंहटाएं
  4. मेरी ब्लॉग पोस्ट के सचित्र हलचल में शामिल करने हेतु धन्यवाद !

    जवाब देंहटाएं

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