निवेदन।


फ़ॉलोअर

सोमवार, 11 अप्रैल 2016

269....यहाँ खुद मिटकर खुद को पाना होता है...

जय मां हाटेशवरी....

सर्वप्रथम...
ये प्यारी सी वंदना....

शारदे माँ! सुमति सद्ज्ञान, संचरित तू ही करती है।
ज्ञान की ज्योति से ब्रह्माण्ड, प्रकाशित तू ही करती है।
जगत आद्यंत व्यापिनी जय,
तमस हरिणी, ज्योतिर्मय जय।
धवल वसना, हंसासिनी जय,
कमल नयनी, कमलासिनी जय।
प्राणियों के कंठों में स्वर समाहित, तू ही करती है।
शारदे माँ! धी, प्रज्ञा, ज्ञान, संचरित तू ही करती है।
सच्चिदानंद स्वरुप अनूप,
सत्य विद्यामय शब्द स्वरुप।
ऋतंभरी वाणी का ऋत रूप,
ज्ञान का आदि मूल प्रारूप।
सृष्टि में वाणी सिद्ध प्रवाह, प्रवाहित तू ही करती है।
शारदे माँ! धी प्रज्ञा से, जगत अनुशासित करती है।
प्रभा धृति, मेधा, श्री शुभ नाम
ज्ञान की मूल शक्ति, सुख धाम।
काव्य, स्वर, छंद, व्याकरण, ज्ञान,
कवित, संगीत, अलंकृत गान।
ब्रह्माणी, वागीषा, तू प्राण प्रतिष्ठित इनमें करती है।
मूढ़ को गूढ़ कवि काली, दास माँ तू ही करती है।
वन्दनं कोटि-कोटि प्रणाम, विश्व को मुखरित करती है।
वन्दनं पुनि-पुनि कोटि प्रणाम, कि जड़ता तू ही हरती है।
मृदुल कीर्ति

अब बिना भूमिका के पेश है....
आज के चयनित लिंक...



मन-राक्षस
शायद कभी कभी ऐसा ही युद्ध होता है,
मेरे मन की पर्तों में ।
शायद बाहरी राक्षस,
विजय पाना चाहते हों,
मन के देवता पर,
क्योंकि मन तो निर्मल है ।
और यदि होती है हार,
तो विजय पाकर राक्षस,
मन को करता दूषित, बेकार,
और इस तरह,
निर्माण होता है, एक नये राक्षस का ।



मुसाफ़िर
s320/book-1149031_640
अब नज़्म चाहती है
तुम्हारी रौनके लगी रहे
ये मकान खाली ना रहे
तुम आओ
हकीकत बन के
तुम्हारी आने की आहट सी न लगे



प्रत्यूषा, आप इतनी कमजोर तो नहीं थी
प्रत्यूषा, आपको लड़ना चाहिए था। आपके हजारों फैन्स को आपसे यही उम्मीद थी कि आप कमजोर नहीं पड़ेंगी! आपको प्यार को पहचानना चाहिए था। जो आपको तिरस्कार दे और
मृत्यू की ओर धकेले, उसे प्रेम तो नहीं कह सकते न! किसी एक व्यक्ति की वजह से, किसी एक राहुल की वजह से आपने अपनी जिंदगी ही दाँव पर लगा दी? ‘आनंदी’ ने ‘जग्या’
को छोड़ कर ‘शिव’ को थाम लिया आपको भी अपनी रियल लाइफ में कोई न कोई ‘शिव’ ज़रुर मिलता। कहते है न कि इंसान हर मुश्किलों का सामना कर सकता है लेकिन जिसे वह
खुद से ज्यादा प्यार करता है, जिस पर खुद से ज्यादा विश्वास करता है, उसकी बेवफ़ाई बर्दाश्त नहीं कर सकता। मैत्री, प्रेम या किसी प्रकार का भी गहरा रिश्ता टूट
जाता है तो उसका दुख तोड़ देता है। लेकिन इस भावनात्मक दर्द से भी उबरा जा सकता है। जिंदगी को फिर से जिंदादिली के साथ जिया जा सकता है। प्रत्यूषा, मैने सुना
है कि पर्दे पर रोल निभाते-निभाते इंसान के अपने मूल स्वभाव में भी रील लाइफ के रोल का असर होता है। क्या आपके दिल पर ‘आनंदी’ का प्रभाव नहीं पड़ा? आप में ‘आनंदी’
जैसा आत्मविश्वास क्यों नहीं आया? काश, आप रियल लाइफ की ‘आनंदी’ बन पाती! क्योंकि रियल लाइफ में भी आप इतनी कमजोर तो कतई नहीं थी


ए ज़िन्दगी
कूचे से तेरी जिंदगी लौटे सादा दिल,
खातिर में तेरे तेज़ और  चालाक रह गये
हाँ जोर तोड़ सब रहे तुझको मनाने को ,
ताक पर लेकिन यहाँ इख़लाक़ रह गये


ये बच्चे जन्म से अपराधी नहीं होते, इन्हें बनाया जाता है
महत्व है इस बात पर ध्यान देना कि आखिर इनमें बढ़ोतरी क्यों हो रही है? इस तरह के अपराधों को अंजाम देने वाले ज्यादा बच्चे गरीब तबके से आते हैं, जिनके साथ
शोषण किया जाता है।" कमला भसीन ने कहा, "ये बच्चे जन्म से अपराधी नहीं होते, समाज इन्हें अपराधी बनने पर मजबूर करता है।" कमला से जब पूछा गया कि दिल्ली महिला
आयोग (डीसीडब्ल्यू) अध्यक्ष स्वाति मालिवाल द्वारा किशोर की रिहाई में रोक लगाने की याचिका और निर्भया की मां तथा देश की अधिकांश जनता द्वारा की जा रही फांसी
की सजा की मांग कहां तक सही है?, तो उन्होंने कहा, "सबसे पहले तो यह देखना चाहिए कि मेरे लिए न्याय का मतलब क्या है? बदला लेना? अगर अदालत भी हत्या की सजा देने
लग जाएगी, तो फिर कानून बनाने का क्या मतलब रह जाएगा? एक तरफ हम सजा की मांग करते हैं और दूसरी तरफ समाज बच्चों का शोषण करता है। हम ही उन बच्चों को बाल मजदूरी
के लिए मजबूर करते हैं और हम ही हर प्रकार से इनका शोषण करते हैं और फिर सजा की मांग भी हम ही कर रहे हैं।" रविवार को बाल सुधार गृह से रिहा हुए किशोर को गैर-सरकारी
संगठन (एनजीओ) भेजा जाएगा। कमला भसीन से जब पूछा गया, कि क्या ऐसे में किशोर में बदलाव संभव है? इस पर उन्होंने कहा, "वह भी हमारे देश का बच्चा है। यहां एक
इंसान को सुधारने की बात की जा रही है। हर इंसान में बदलाव हो सकता है। हर व्यक्ति को अपनी गलती का एहसास हो सकता है। लोग कह रहे हैं कि इसमें बदलाव नहीं हुआ
है, तो यह बताइए कि इसके लिए कौन जिम्मेदार है?" कमला भसीन ने आगे कहा, "एक तरफ हम स्मार्ट सिटी और अन्य बड़ी परियोजनाओं पर लाखों-करोड़ों रुपये खर्च करने के
लिए तैयार हैं, लेकिन दूसरी ओर यह देखिए कि हम इन किशोरों के जीवन में सुधार के लिए क्या कर रहे हैं। सजा से अपराध कम नहीं होते, हमारी सोच-विचार से अपराधों
में कमी आएगी। अगर सजा-ए-मौत देने से अपराधों में कमी आती, तो फिर कोई अपराध होता ही नहीं, जितने पैसों में इन बड़ी परियोजनाओं में काम हो रहा है, उतने में


यहाँ खुद मिटकर खुद को पाना होता है...
 हम तो यह भी भूल चुके हैं...
कि क्या बनने आये थे
और क्या बन गए के रह गए हैं
ज़िन्दगी की इस भागदौड़ में
सही तो कहा है किसी ने
कि यहाँ खुद मिटकर
खुद को पाना  होता है !!!



धन्यवाद।

5 टिप्‍पणियां:

आभार। कृपया ब्लाग को फॉलो भी करें

आपकी टिप्पणियाँ एवं प्रतिक्रियाएँ हमारा उत्साह बढाती हैं और हमें बेहतर होने में मदद करती हैं !! आप से निवेदन है आप टिप्पणियों द्वारा दैनिक प्रस्तुति पर अपने विचार अवश्य व्यक्त करें।

टिप्पणीकारों से निवेदन

1. आज के प्रस्तुत अंक में पांचों रचनाएं आप को कैसी लगी? संबंधित ब्लॉगों पर टिप्पणी देकर भी रचनाकारों का मनोबल बढ़ाएं।
2. टिप्पणियां केवल प्रस्तुति पर या लिंक की गयी रचनाओं पर ही दें। सभ्य भाषा का प्रयोग करें . किसी की भावनाओं को आहत करने वाली भाषा का प्रयोग न करें।
३. प्रस्तुति पर अपनी वास्तविक राय प्रकट करें .
4. लिंक की गयी रचनाओं के विचार, रचनाकार के व्यक्तिगत विचार है, ये आवश्यक नहीं कि चर्चाकार, प्रबंधक या संचालक भी इस से सहमत हो।
प्रस्तुति पर आपकी अनुमोल समीक्षा व अमूल्य टिप्पणियों के लिए आपका हार्दिक आभार।




Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...