निवेदन।


फ़ॉलोअर

शुक्रवार, 18 मार्च 2016

245....भूख है तो सब्र कर रोटी नहीं तो क्या हुआ

जय मां हाटेशवरी...

दुष्यंत कुमार जी की ये  रचना...
मैं जितनी बार भी पढ़ता हूं...
हर बार नया आनंद आता है...
जब मुझे आनंद आता है उसे पढ़कर...
आप को भी तो आनंद आना चाहिये...
भूख है तो सब्र कर रोटी नहीं तो क्या हुआ
आजकल दिल्ली में है ज़ेर-ए-बहस ये मुदद्आ ।
मौत ने तो धर दबोचा एक चीते कि तरह
ज़िंदगी ने जब छुआ तो फ़ासला रखकर छुआ ।
गिड़गिड़ाने का यहां कोई असर होता नही
पेट भरकर गालियां दो, आह भरकर बददुआ ।
क्या वज़ह है प्यास ज्यादा तेज़ लगती है यहाँ
लोग कहते हैं कि पहले इस जगह पर था कुँआ ।
आप दस्ताने पहनकर छू रहे हैं आग को
आप के भी ख़ून का रंग हो गया है साँवला ।
इस अंगीठी तक गली से कुछ हवा आने तो दो
जब तलक खिलते नहीं ये कोयले देंगे धुँआ ।
दोस्त, अपने मुल्क कि किस्मत पे रंजीदा न हो
उनके हाथों में है पिंजरा, उनके पिंजरे में सुआ ।
इस शहर मे वो कोई बारात हो या वारदात
अब किसी भी बात पर खुलती नहीं हैं खिड़कियाँ ।

अब बारी है...
आज के लिये...
मेरी पसंद में आप की रचनाओं की...

टहलना तो बस एक बहाना होता है शायद
शुरूआत करते हैं जह्ान्वी के इस बेहतरीन डायलाग से ... शहर की इस दौड़ में दौड़ के करना क्या है, अगर यही जीना है तो मरना क्या है...मुझे यह डॉयलाग बहुत पसंद
है...अनेकों बार सुन चुका हूं और सुनता रहता हूं ...जैसा आधुिनक जीवन का सार सिमट कर रख दिया हो इसमें...आप भी सुनिए....

सुबह सुबह ऐसे में टहलने से हमें किसी की खुशी में खुश होने की भी सीख मिलती हैं , वरना सत्संग में यह भी तो समझाते हैं कि आज का मानव दूसरे की खुशी से नाखुश
है...उदास है ... और एक बात संक्रामक हंसी से याद आ गई ...
मैं सत्संग में सुनता हूं अकसर कि एक बार एक गुरु ने अपने दो शिष्यों को १००-१०० फूल दिए और उन्हें बांटने के लिए कहा ...शर्त यही रखी कि जो हंसता हुआ दिखे
... उसे ही एक फूल देना है....शाम के वक्त दोनों लौट आए, एक के पास सभी फूल वैसे के वैसे और दूसरे को झोला खाली ....जो चेला सारे फूल वापिस ले कर लौट आया, उन
ने पूछने पर बताया कि बाबा, दुनिया है ही इतनी खराब, सारे के सारे उदासी में जिए जा रहे हैं, सुबह से शाम हो गई , मुझे तो कोई भी मुस्कुराता नहीं दिखा...
चलिए अब दूसरे की बारी आई....उसने कहा ... कि बाबा, लोग इतने अच्छे हैं, मैं जिसे भी मिला, मैं उसे देख कर जैसे ही मुस्कुराता, वह भी खुल कर मुस्कुरा देता..और
मैं झोले में से गुलाब निकाल कर उसे थमा देता....गुरू जी, मेरे फूल तो एक घंटे में ही खत्म हो गये....मुझे तो यही लग रहा था कि मुझे और भी बहुत से फूल लेकर
चलना चाहिए था।
सीख क्या मिलती है इस प्रसंग से, हम सब जानते ही हैं, हंसिए खुल कर हंसिए, और दुनिया आप के साथ हंसेगी...बांटिए, खुशियां बांटिए, मदर टेरेसा ने एक बार कहा था
कि आप जिस से भी मुलाकात करो, उसे आप से मिलकर बेहतर महसूस करना चाहिए।


आओ बदल लें खुद को थोड़ा
ख्वाब ये रखते देश बदल दें,
चाहत है परिवेश बदल दें,
पर औरों की बात से पहले,
क्यों न अपना भेष बदल दें ।
चोला झूठ का फेंक दे आओ,
सत्य की रोटी सेंक ले आओ,
दौड़ा दें हिम्मत का घोड़ा,
आओ बदल लें खुद को थोड़ा ।



वो शख्श
वो तो लगाता रहा
उम्र भर चाहत के फूल
लोगो ने मिलकर
उसकी बगिया ही उजाड़ दी ।।
फैलता रहा वो हरदम
प्रकाश सबके जीवन में
सबने मिलकर उसकी जिंदगी
घुप्प अंधेरो में पाट दी ।।



तो मुझे तुम से कुछ नहीं कहना है...
याद रखो
एक बच्चे की हत्या
एक औरत की मौत
एक आदमी का
गोलियों से चिथड़ा तन
किसी शासन का ही नहीं
सम्पूर्ण राष्ट्र का है पतन।
ऐसा खून बहकर
धरती में जज्ब नहीं होता
आकाश में फहराते झंडों को
काला करता है।
जिस धरती पर
फौजी बूटों के निशान हों
और उन पर
लाशें गिर रही हों
वह धरती
यदि तुम्हारे खून में
आग बन कर नहीं दौड़ती
तो समझ लो
तुम बंजर हो गये हो-


इक उम्र बीती आए तब मिलने के वास्ते......महेश चन्द्र गुप्त ’ख़लिश
s1600/images%2B-Sushma
नज़रें मिलीं तो थीं मगर वो ही न मिल सके
मानिंदे-शम्मा हम रहे जलने के वास्ते
बेकार सब जीना रहा, हासिल न कुछ हुआ
हम कुछ नहीं क़ाबिल रहे करने के वास्ते
है अब नहीं उम्मीद या अरमान कुछ ख़लिश
हम जी रहे हैं सिर्फ़ अब मरने के वास्ते.



कमाई कर रही बेटी, हिमालय तक चढ़ाई की
कमाई कर रही बेटी, हिमालय तक चढ़ाई की |
चले नौ दिन मगर दूरी, नहीं पूरी अढ़ाई की ||


जाने क्या क्या देख लिया
s1600/images
नन्हे से इस दिल में अब भी, अरमान मचलते बच्चे से
एक ख्वाब हकीकत करने में, न जाने क्या क्या देख लिया
दिन रात गये मौसम भी गये, बदले दिन महीनों सालों में
इन बरसों के आने जाने में, ना जाने क्या क्या देख लिया


लगता है...
प्रस्तुति कुछ लंबी हो गयी...
मैं भी क्या करूं....
बहुत आनंद आ रहा है...
रचनाएं पढ़ने में...

धन्यवाद।



 




6 टिप्‍पणियां:

आभार। कृपया ब्लाग को फॉलो भी करें

आपकी टिप्पणियाँ एवं प्रतिक्रियाएँ हमारा उत्साह बढाती हैं और हमें बेहतर होने में मदद करती हैं !! आप से निवेदन है आप टिप्पणियों द्वारा दैनिक प्रस्तुति पर अपने विचार अवश्य व्यक्त करें।

टिप्पणीकारों से निवेदन

1. आज के प्रस्तुत अंक में पांचों रचनाएं आप को कैसी लगी? संबंधित ब्लॉगों पर टिप्पणी देकर भी रचनाकारों का मनोबल बढ़ाएं।
2. टिप्पणियां केवल प्रस्तुति पर या लिंक की गयी रचनाओं पर ही दें। सभ्य भाषा का प्रयोग करें . किसी की भावनाओं को आहत करने वाली भाषा का प्रयोग न करें।
३. प्रस्तुति पर अपनी वास्तविक राय प्रकट करें .
4. लिंक की गयी रचनाओं के विचार, रचनाकार के व्यक्तिगत विचार है, ये आवश्यक नहीं कि चर्चाकार, प्रबंधक या संचालक भी इस से सहमत हो।
प्रस्तुति पर आपकी अनुमोल समीक्षा व अमूल्य टिप्पणियों के लिए आपका हार्दिक आभार।




Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...