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सोमवार, 7 दिसंबर 2015

142.........चुप रहे शायद बात सुधर जायेगी












सादर अभिवादन स्वीकारें

कमाल की तक़दीर 
पायी है उस शख्स ने......

जिसने तुझसे 
मुहब्बत भी ना की हो, 
और पा लिया तुझे .....

अभी लगभग एक घण्टे पहले ही याद आया
कल सोमवार है..

कल मुझे अपनी प्रस्तुति बनानी है
सो आनन-फानन में तैय्यार की हुई प्रस्तुति....
आइए चले चुनिन्दा रचनाओं की कड़ियाँ देख लें पहले...


नीलिमा शर्मा
कुछ कह देने से
बात बिगड़ जाएगी
चुप रहे शायद
बात सुधर जायेगी
बात बात की ही नही थी
उनके मूड की थी


सुधिनामा में....
कुछ अनछुई सी निशानियाँ
कुछ डगमगाती रवानियाँ
जाने किस खला में बिला गयीं
तेरे नाम थीं जो कहानियाँ !


अर्पित सुमन में....
.....कुछ ख़याल 
बुन रही हूँ मैं 
तुम्हारे एहसास के 
हर फंदे पर 
डाल रही हूँ 
एक बेजोड़ बुनाई 


मेरे मन की में....
जब मैंने स्कूल में कार्य करना शुरू किया उस समय मुझे पता नहीं था - मैं किस तरह कार्य करूँगी ... परिस्थितियाँ कुछ ऐसी बन गई थी कि मेरे सामने आगे जीवन चलाना और साथ दो बच्चों का भरण-पोषण करना एक चुनौती था ...


उन्नयन में....
क्यों    मिलता  है  ऐसा    हाल,
मलाल   है ,     जिंदगी       से -

क्या   पहनने  ओढ़ने  को  सिर्फ
दर्द  ही   हैं,  सवाल  है  जिंदगी से-


कविता मंच में....
तुम बता दो कि
सज़ा मेरी क्या होगी
मुझे जाना होगा
तुम्हारे दिल को छोड़
अपनी दुनिया में वापस
या फिर तेरे दिल में ही रहने की
उम्र क़ैद मुझे मयस्सर होगी !!


कौन कहता है 
"पैसा" 
सब कुछ 
खरीद सकता है.
"दम" है 
तो टूटे हुए 
"विश्वास" 
को पाकर दिखाए.

आज्ञा दें यशोदा को













8 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर हलचल प्रस्तुति आभार

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत रुचिकर ब्लॉग है। मैंने पूरा ब्लॉग देखा, अच्छा लगा। धन्यवाद।

    जवाब देंहटाएं
  3. सुन्दर सार्थक पठनीय सूत्रों से सजी हलचल ! मेरी रचना को आज की हलचल में सम्मिलित करने के लिये आपका हृदय से आभार यशोदा जी !

    जवाब देंहटाएं
  4. शायद तेरी कोख में बुझदिल पैदा नहीं होते ...
    इसलिए ऐ फलस्तीन की मिटटी तुझे सलाम ..

    जब भी फलस्तीन का जिक्र आता है जहन में एक बहादूर और सहन करने वाले लोगों की
    छवि उभर आती है फलस्तीन की जनता पर क्रूर इस्राइली जुल्म की इंतिहा सालों से जारी है......
    लेकिन ..........
    फलस्तीन की उस जमीन को सलाम
    जिसके के हर बगीचे को दुश्मनों ने रोंद दिया जहाँ की हर खिड़की का शीशा तक जुल्म का शिकार होकर टुटा है..स्कूल अजायब घर नजर आते है...उस देश की हर वादी में अमन का कत्ल हुआ है.
    उस जमीन के हर घर में एक शहीद की तस्वीर दीवार पर जरूर मिलेगी है.......
    उस जमीन की हर औरत को सलाम..........
    जो खून से लथपथ अपने बच्चो को गोद में लेकर कहती है ऐ जालिम इससे ज्यादा तेरे जुल्म की इन्तिहा क्या होगी लेकिन फ़िक्र ना कर में ऐसे बहादुर बच्चो को फिर जन्म दूंगी
    उस जमीन के हर बच्चे को सलाम....
    यतीम होना इस देश के बच्चे शायद जानते तक न हो फिर भी दुश्मन के सामने खड़े होकर कहते है .
    ढा ले जुल्म तू आखरी हद तक ऐ दुश्मन लेकिन .हम तेरे सामने नहीं झुकेंगे ..हम भी जवानी में कदम रखेंगे हम फिर लड़ेंगे ....क्योंकि हमें बहादुरी सिखाई जाती है. बुजदिली नहीं


    ऐ फलस्तीनियों आखिर तुम किस मिट्टी के बने हो ..कितना जुल्म सहन करोगे .....

    जवाब देंहटाएं
  5. आभार मेरे ब्लॉग को लिंकित करने के लिए

    जवाब देंहटाएं

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