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बुधवार, 16 सितंबर 2015

वक़्त गया वो बीत---अंक 60

जय मां हाटेशवरी...


एक आदमी एक सेठ की दुकान पर नौकरी करता था। वह बेहद ईमानदारी और लगन से अपना काम करता था। उसके काम से सेठ बहुत प्रसन्न था और सेठ द्वारा मिलने वाली तनख्वाह
से उस आदमी का गुज़ारा आराम से हो जाता था। ऐसे ही दिन गुज़र रहे थे।
एक दिन वह आदमी बिना बताए काम पर नहीं गया। उसके न जाने से सेठ का काम रूक गया।  तब उसने सोचा कि यह आदमी इतने दिनों से ईमानदारी से काम कर रहा है। मैंने कबसे
इसकी तन्ख्वाह नहीं बढ़ाई। इतने पैसों में इसका गुज़ारा कैसे होता होगा?
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सेठ ने सोचा कि अगर इस आदमी की तन्ख्वाह बढ़ा दी जाए, तो यह और मेहनत और लगन से काम करेगा। उसने अगले दिन से ही उस आदमी की तनख्वाह बढ़ा दी। उस आदमी को जब एक
तारीख को बढ़े हुए पैसे मिले, तो वह हैरान रह गया। लेकिन वह बोला कुछ नहीं और चुपचाप पैसे रख लिये...
धीरे-धीरे बात आई गई हो गयी। कुछ महीनों बाद वह आदमी फिर फिर एक दिन ग़ैर हाज़िर हो गया। यह देखकर सेठ को बहुत गुस्सा आया। वह सोचने लगा- कैसा कृतघ्न आदमी है।
मैंने इसकी तनख्वाह बढ़ाई, पर न तो इसने धन्यवाद तक दिया और न ही अपने काम की जिम्मेदारी समझी।  इसकी तन्खाह बढ़ाने का क्या फायदा हुआ? यह नहीं सुधरेगा!
और उसी दिन सेठ ने बढ़ी हुई तनख्वाह वापस लेने का फैसला कर लिया।
अगली 1 तारीख को उस आदमी को फिर से वही पुरानी तनख्वाह दी गयी। लेकिन हैरानी यह कि इस बार भी वह आदमी चुप रहा। उसने सेठ से ज़रा भी शि‍कायत नहीं की। यह देख
कर सेठ से रहा न गया और वह पूछ बैठा-
बड़े अजीब आदमी हो भाई। जब मैंने तुम्हारे ग़ैरहाज़िर होने के बाद पहले तुम्हारी तन्ख्वाह बढ़ा कर दी, तब भी तुम कुछ नहीं बोले। और आज जब मैंने तुम्हारी ग़ैर
हाज़री पर तन्ख्वाह फिर से कम कर के दी, तुम फिर भी खामोश रहे। इसकी क्या वजह है?
उस आदमी ने जवाब दिया- जब मैं पहली बार ग़ैर हाज़िर हुआ था तो मेरे घर एक बच्चा पैदा हुआ था। उस वक्त आपने जब मेरी तन्ख्वाह बढ़ा कर दी, तो मैंने सोचा कि ईश्वर
ने उस बच्चे के पोषण का हिस्सा भेजा है। इसलिए मैं ज्यादा खुश नहीं हुआ। ...जिस दिन मैं दोबारा ग़ैर हाजिर हुआ, उस दिन मेरी माता जी का निधन हो गया था। आपने
उसके बाद मेरी तन्ख्वाह कम कर दी, तो मैंने यह मान लिया कि मेरी माँ अपने हिस्से का अपने साथ ले गयीं.... फिर मैं इस तनख्वाह की ख़ातिर क्यों परेशान होऊँ?

यह सुनकर सेठ गदगद हो गया। उसने फिर उस आदमी को गले से लगा लिया और अपने व्यवहार के लिए क्षमा मांगी। उसके बाद उसने न सिर्फ उस आदमी की तनख्वाह पहले जैसे कर
दी, बल्कि उसका और ज्यादा सम्मान करने लगा।
मैं भी आज कुछ पुरानी रचनाएं पढ़कर आनंदित हो रहा था...
पढ़ते-पढ़ते रचनाओं की संख्या पांच हो गयी....
तो आज के अंक में  आप भी लिजिये इन पांच रचनाओं का ही आनंद...

कही कोई नहीं है जी .......
मुझे सपने देखने की आदत है
एक सच्चा सपना गलती से देख लिया था कोई नहीं है जी , कोई नहीं है ....
सच में ...पता नहीं लेकिन कभी कभी मैं गली के मोड़ तक जाकर आती हूँ
अकेले ही जाती हूँ और अकेले ही आती हूँ ..कही कोई नहीं है जी ..
कोई नहीं ...



फेयरवेल डियर फाबिया, यू वेयर द बेस्ट कार एवर

चलोगी...मगर मुझसे नहीं होता. मैं नहीं गयी. यहाँ हूँ. अनगिन तस्वीरों में घिरी हुयी. आज कार के पेपर्स साइन हो गए. किसी और के नाम हो गयी गाड़ी...अब शायद वे
उसके स्पेयर पार्ट्स करके बेच देंगे...बॉडी कोई कबाड़ी उठा लिए जाएगा.
बच जाती हूँ मैं. गहरी उदास. डियर फाबिया. आई एम सॉरी कि मैंने तुमसे कभी कहा नहीं.
आई लव यू. तुम मेरी पहली कार थी...और मेरा पहला पहला प्यार रहोगी.
हमेशा. हमेशा. हमेशा.


महारानी
रानी का चोला पहनाकर सब्जबाग दिखलाया।    
फिर जज्बातों से खेले कैसा मुझको भरमाया।
मैं नादान नहीं पहचानी।।

कुंठित मन बेचैन स्वयं को कैसे धीर बंधाऊं।
किस्मत की हेठी हूँ या अपनों का दोष बताऊँ।
भीगी पलकें मति बौरानी।।


वक़्त गया वो बीत !
जिनको पंछी की रही,नहीं कभी पहचान !
कह दूँ कैसे मैं उन्हें ,सुन कोयल की तान !
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सूखा दरख़्त कह रहा.वक़्त गया वो बीत !


एअर कंडीशन नेता

राज्य की बोलो जय ।
काका का दर्शन प्राप्त करो, सब पाप-ताप हो जाए क्षय ॥
मैं अपनी त्याग-तपस्या से जनगण को मार्ग दिखाता हूँ ।
है कमी अन्न की इसीलिए चमचम-रसगुल्ले खाता हूँ ॥
गीता से ज्ञान मिला मुझको, मँज गया आत्मा का दर्पण ।
निर्लिप्त और निष्कामी हूँ, सब कर्म किए प्रभु के अर्पण ॥
आत्मोन्नति के अनुभूत योग, कुछ तुमको आज बतऊँगा ।
यह रचना काका हाथरसी की है और आज के समय में भी प्रासंगिक है . आप भी कविता पढ़िए और आनंद उठाइये.
धन्यवाद...

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