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शनिवार, 25 जुलाई 2015

कुछ लिखने वाले के कुछ पढ़ने वाले कुछ भी पढ़ते पढ़ते उसी के जैसे हो जाते हैं...छठवीं प्रस्तुति

सादर आभिवादन करती है यशोदा

इस कदर उधार ले के खाया है मैंनें......,,,
कि दुकानदार भी 
मेरी जिंदगी की दुआ करते हैं…

प्रस्तुत आज की मेरी पसंदीदा रचनाओं के लिंक्स....


इतना इतना 
कितना कितना 
लिखता है 
देखा कर कभी 
तो सही खुद भी 
पढ़ कर जितना 
जितना लिखता है 


छोटी सी पहल - लघु कथा
पूजा भी किया है भरपूर नारियल भी तोड़ा मंदिर में। फिर भी भगवान में मेरी किस्मत तोड़ रखी है।" यही सब भुनभुनाता तनुज फिर से रास्ते को निहारने में जुट गया। वो एक बार बाहर झांकता फिर वापस अपने दराज पर देखता। चार दस के नोट दो बीस के और एक पचास के कुल मिलकर हुए 130 रुपये। उसी 130 रूपए को हजारों बार गिन चुका था। 



साफ़   छुपते  भी  नहीं   सामने  आते  भी  नहीं
दिल  चुराते  हैं  तो  कमबख़्त  बताते  भी  नहीं

आपका    दांव  लगे    आप   उड़ा  लें  दिल  को
हम  गई  चीज़  का कुछ  सोग़ मनाते  भी  नहीं


मेरी तुम...कुछ तेरी मैं... 
हों एक कॉल की दूरी पर 
हाँ मेरी तुम... हाँ तेरी मैं... 
क्या किया सयाने होकर के 
कुछ मैंने खोया... कुछ तुमने खोया...


‘दि‍ल करता है, आज ही काम से नि‍काल दूं इसे. जब देखो तब कुछ न कुछ चुपचाप उठाकर ले जाती है. और अगर पूछो तो ऐसे एक्‍टिंग करती है मानो इस तरह की चीज़ तो कभी हमारे घर में थी नहीं शायद.' वह अख़बार तो पढ़ रहा था पर देख भी रहा था कि‍ आज ड्रॉअर और अल्मारि‍यां खोलने- बंद करने की आवाज़ कुछ ज्‍यादा ही तेज़ थी. 

आज की प्रस्तुति सम्पन्न करने इज़ज़ात चाहती हूँ

मैँ कैसी हूँ’ ये कोई नहीँ जानता,
मै कैसी नहीं हूँ’
ये तो शहर का हर शख्स बता सकता है…

सादर
यशोदा..
























5 टिप्‍पणियां:

  1. सुंदर प्रस्तुति और आभार 'उलूक' के सूत्र 'कुछ लिखने वाले के कुछ पढ़ने वाले कुछ भी पढ़ते पढ़ते उसी के जैसे हो जाते हैं' को स्थान दिया । सब लिखा सबको पढ़वाती हैं अपना लिखा भी क्यों नहीं लाकर दिखाती हैं लिखने पर आती हैं तो पकड़ी जाती हैं :)

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